-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी के आंकड़े सरकार को छका रहे हैं. पिछली सरकार ने सीएमआईई के आंकड़ों पर भरोसा किया। सीएमआईई के मुताबिक छत्तीसगढ़ में वास्तविक बेरोजगारी की दर 0.6 प्रतिशत है। अर्थात रोजगार में सक्षम लगभग सभी लोगों के पास काम है। पर नेशनल सैम्पल सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी की दर 26 प्रतिशत से ऊपर है। लगता है दोनों एजेंसियों में दृष्टिकोण का फर्क है। नेशनल सैम्पल सर्वे रोजगार के लिए आए आवेदन और रोजगार प्राप्त करने वालों के आंकड़ों को प्रमुखता देता है। सीएमआईई वास्तविक रोजगार पर फोकस करता है। देश के प्रधानमंत्री युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करते रहे हैं। स्वरोजगार के आंकड़ों को नेशनल सैम्पल सर्वे किसी खातिर में नहीं लाता। वास्तविकता यह है कि रोजगार दफ्तर में पंजीयन कराने वाले तीन चौथाई से ज्यादा लोगों को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती। प्राइवेट कंपनियों के प्लेसमेंट कैम्प में भी लोगों को बहुत कम नौकरियां मिल पाती हैं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि सभी लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। वैसे भी प्रधानमंत्री कहते रहे हैं कि प्राइवेट में 10-15 हजार की नौकरी करने की बजाय स्वरोजगार को अपनाना श्रेयस्कर है। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है तो यहां कृषि और कृषि आधारित रोजगार के अवसर अधिक हैं। पर रोजगार का बाजार कभी इसपर फोकस नहीं करता। जबकि पिछले कुछ वर्षों में युवाओं का रुझान कृषि आधारित उद्योगों की तरफ बढ़ा है। भिलाई इस्पात संयंत्र से जुड़े कई कर्मचारी और अधिकारी आज आसपास के गांवों में जमीन खरीद कर खेती कर रहे हैं। इसकी एक वजह तो छत्तीसगढ़ में मिलने वाली धान की कीमत है। पैसे लगाए, सिंचाई सुविधा विकसित की, अच्छे बीज और खाद का उपयोग किया और पैदावार पूरा का पूरा सरकार को बेच दिया। इसी तरह रियल एस्टेट एजेंटों की भी बाढ़ आई हुई है। लोग सड़क किनारे एक प्लास्टिक की कुर्सी लगाकर बैठ जाते हैं। पास ही उनकी बाइक खड़ी रहती है जिसमें सड़क किनारे के बिकाऊ प्लाटों का, फ्लैटों का ब्यौरा होता है। यह भी रोजगार है। महीने में दो भी ग्राहक फंसे तो चार महीने की कमाई हो जाती है। कोरोना काल में पुणे से लौटकर दो इंजीनियरों ने बाड़ी से सब्जी लाकर होम डिलीवरी का काम शुरू किया। हालांकि कोरोना काल के बाद उनका धंधा मंदा हुआ है पर अब वे विदेशी और दुर्लभ फल बेचने लगे हैं। जब सीएमआईई रोजगार की बात करता है तो वह युवाओं की व्यावसायिक सक्रियता की बात करता है। इसमें स्वरोजगार से लेकर ट्यूशन और कोचिंग जैसे रोजगार के उपक्रम भी शामिल हैं। इसके अलावा एनजीओ, चंदा वसूली और सेवा प्रकल्प जैसे उपाय भी हैं रोजगार हासिल करने के लिए। ज्यादा लोगों को नहीं पता होगा कि एमएसडब्लू की पढ़ाई भी भिलाई जैसे शहर में चार दशक पहले शुरू हो गई थी। वैसे बड़ी संख्या में बेरोजगारों ने क्रिकेट बेटिंग से भी पैसा कमाया है।