नई दिल्ली (एजेंसी)। भारतीय नौसेना फरवरी 2024 में अपने सबसे बड़े नौसैनिक युद्धाभ्यास- मिलन 2024 का आयोजन करने जा रही है। 19 से 27 फरवरी के बीच विशाखापत्तनम में चलने वाले इस अभ्यास में इस बार 50 से ज्यादा मित्र देशों के शामिल होने की संभावना है। वहीं, 20 से ज्यादा नौसैनिक पोत भी इस अभ्यास का हिस्सा बनेंगे। भारतीय नौसेना ने इससे जुड़ा एक वीडियो भी साझा किया है।
गौरतलब है कि मिलन भारत की नौसेना की तरफ से किय जाने वाला सबसे बड़ा बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास है। आखिरी बार 2022 में हुए इस युद्धाभ्यास में 46 मित्र देशों को न्योता भेजा गया था। इनमें रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, ईरान, फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, बांग्लादेश, ब्राजील, संयुक्त अरब अमीरात, अन्य शामिल रहे थे।
क्या है मिलन अभ्यास?
यह सबसे जटिल नौसैनिक अभ्यास है जो भारत किसी भी अन्य देश के साथ करता है। मिलन एक बहुपक्षीय युद्ध नौसैनिक अभ्यास है जिसे 1995 में शुरू किया गया था। उद्घाटन संस्करण में भारतीय नौसेना के अलावा, इंडोनेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड की नौसेनाओं ने भाग लिया था।
इस आयोजन का भारत के लिए क्या महत्व है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह आयोजन उपमहाद्वीप के समुद्र तटों में भारत की समुद्री श्रेष्ठता को दिखाने और उसकी समुद्री सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। चीन की बढ़ती नौसैनिक ताकत और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति के मद्देनजर चीन की घेराबंदी के लिए यह जरूरी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन का नौसैनिक विस्तार भारत के लिए चुनौतियां पैदा करता है इसलिए भारत के लिए ऐसे अभ्यासों की बहुत जरूरत है। हिंद महसागर तेजी से चीन और भारत के लिए एक भू-रणनीतिक केंद्र बिंदु बनता जा रहा है, क्योंकि दोनों में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक तरफ जहां चीन आर्थिक और रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए रणनीतिक बंदरगाहों तक पहुंच सुरक्षित करने का लक्ष्य रखता है, वहीं भारत की भूमिका को समुद्री मार्ग और नौवहन की स्वतंत्रता की रक्षक के रूप में देखा जा रहा है। इस अभ्यास के जरिए भारत को अलग-अलग देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने और समुद्री सहयोग हासिल करने का एक मौका मिलता है।
दूसरे देशों को क्या फायदा मिलता है?
जिस तरह यह अभ्यास दूसरे देशो के साथ संबंध मजबूत करने का मौका भारत को देता है वैसे ही यह मौका दूसरे देशों के लिए भारत के साथ अपने रिश्तों को सहेजने का है। इस नौसैनिक अभ्यास के भागीदार देशों को भी इससे लाभ मिलता है। विशेष रूप से छोटे देश जिनमें क्षमता और संसाधनों की कमी है, वे इस अवसर का लाभ उठाते हैं।