-दीपक रंजन दास
पुलों का आविष्कार नदी नालों को पार करने के लिए हुआ था। रेलगाड़ी और सड़क पर चलने वाली गाडिय़ां भी एक दूसरे का रास्ता काटती थीं। प्राथमिकता रेल को मिलती थी। जैसे ही कोई क्रासिंग आता, सड़क मार्ग को बंद कर दिया जाता जो रेल के गुजरने के बाद खुलता। विकास का पहिया चलता रहा और रेलगाडिय़ों की बाढ़ आ गई। क्रासिंग दिन में कई-कई घंटे के लिए बंद होने लगा। इसका भी हल ढूंढ लिया गया। ओवर ब्रिज और अंडरब्रिज बनाकर सड़क यातायात को आसमान और पाताल में भेज दिया गया। गाडिय़ों की संख्या बढ़ती रही तो सड़कों की क्रासिंग का भी यही हाल हो गया। फिर सड़कों पर भी ओवरब्रिज (फ्लाईओवर) बना दिये गये। फ्लाईओवर हो या अंडरब्रिज इसकी ढाल बनाने के लिए चौक से कहीं ज्यादा जगह चाहिए होती है। चौक-चौराहे के दोनों तरफ सैकड़ों मीटर की जमीन खाली रह जाती है। ऊपर से सड़क गुजर रही होती है इसलिए इसके नीचे डेरा जमाना आसान होता है। अब सारा झगड़ा इस खाली जमीन को लेकर है। सड़क भले ही आसमान में बनी हो तो पर उसके पैर जमीन पर ही होते हैं। यह जमीन लोक निर्माण विभाग के सेतु निर्माण विभाग को हस्तांतरित कर दी जाती है। उसका काम सेतु बनाना है न कि उसके नीचे की व्यवस्था करना। कायदे से नीचे की जमीन को प्राप्त करने के लिए स्थानीय सरकार को पहल करनी चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे भिलाई नगर निगम ने भिलाई टाउनशिप पर विकास कार्य करने के लिए अधिकार जमाया। एक बार यह जमीन स्थानीय सरकार के पास आ जाए तो वह उसकी भी प्लानिंग कर सकती है। शहरों में यातायात का भारी दबाव है और पार्किंग को लेकर मारामारी की स्थिति है। जहां-जहां फ्लाईओवर बाजार या आवासीय क्षेत्र में बने हैं, वहां इस खाली स्थान का उपयोग पार्किंग के लिए किया जा सकता है। छोटे-मोटे रोजगार के लिए यहां गुमटियों को लायसेंस दिया जा सकता है। देर सबेर ऐसा होना तय है इसलिए ऐसे स्थलों की ताक में रहने वालों ने वहां पहले ही डेरा जमा लिया है। जब उन्हें हटाने से लिए सर्वे किया जाएगा तो इसमें उनका नाम पहले आ जाएगा। फिर जब गुमटियां आवंटित होंगी तो उन्हें वह जगह एक नम्बर में मिल जाएगी। शहरों का विकास इसी तरह होता है। जिस शहर से रोजगार जुड़ा हो, वहां झुग्गी बस्तियां, ठेला-गुमटी वाले शहर के आसपास फैलते चले जाते हैं और शहर बड़ा होता जाता है। शहर सरकार को फैलना होता तो वह इन्हें थोड़ा और बाहर ठेल देती है। विकास का यह क्रम प्रत्येक शहर में देखने को मिल जाएगा। पर नया दौर शहर को सुन्दर बनाने का भी है। अब शहर वाले नहीं चाहते कि उनके आसपास झुग्गियां हों, भिखारियों का डेरा हो। इसलिए शहर सरकार को कुछ और मुस्तैदी के साथ प्लानिंग करनी होगी। फ्लाईओवर बनना शुरू होते ही उसके नीचे की प्लानिंग भी बन जानी चाहिए।
gustakhi Maaf: फ्लाईओवर के नीचे की जमीन किसकी
