-दीपक रंजन दास
जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, कुपोषण के आंकड़े डराने लगे हैं। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कुपोषण की दर 31।3 प्रतिशत है। अर्थात लगभग एक तिहाई बच्चे कुपोषित हैं। राज्य सरकार कुपोषण की जांच करने के लिए वजन त्यौहार का आयोजन करती है। वजन के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ में 19।86 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। वैसे कुपोषण का मतलब केवल वजन का कम होना नहीं है। कुपोषण कई प्रकार के होते हैं। लगभग सभी महाविद्यालयों में कभी न कभी रक्तदान कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। बच्चे पहली बार बतौर बालिग रक्तदान करने के लिए आगे आते हैं। पर जब उनकी जांच की जाती है तो उन्हें रक्तदान के अयोग्य पाया जाता है। किसी का वजन बहुत कम होता है तो अधिकांश का एचबी काफी कम होता है। खतरे की घंटी तो यहां भी बजनी चाहिए पर किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। भारत की एक बड़ी आबादी सदियों से गरीबी में जीती आ रही है। आज देश भले ही चांद पर पहुंच गया हो पर ये आंकड़ा अप्रभावित है। गरीबों की संख्या लगातार बढ़ी है। जब घर में खाने को पर्याप्त नहीं होता तो भोजन पर पहला अधिकार कमाने वाले पुरुष का हो जाता है। बच्चों को भोजन कराने में आज भी बालकों को प्राथमिकता दी जाती है। लिहाजा आबादी का वह हिस्सा वंचित रह जाता है जिसपर आने वाली पीढिय़ों को जन्म देने की अहम जिम्मेदारी होती है। फिर अल्पायु में विवाह और संतानोत्पत्ति के कारण स्थिति विकराल होती चली जाती है। वैसे कुपोषण का संबंध सिर्फ गरीबी से नहीं है। जिनके यहां पर्याप्त खाने को है वहां भी खान-पान बिगड़ा हुआ है। लिहाजा निम्न मध्यमवर्ग से लेकर उच्च मध्यमवर्ग तक के परिवारों में भी कुपोषित बच्चे पाये जाते हैं। इनका कुपोषण अलग तरह का होता है। ये सामान्य से डेढ़ गुना तक भारी होते हैं। कुछ सींकिया पहलवान भी होते हैं। जब भी ब्लड टेस्ट कराते हैं तो 5-7 कमियां निकल ही आती हैं। इनके शरीर में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ा हुआ होता है। अर्थात ये भी कुपोषित ही होते हैं। यही बात चिंतित करती है। देश आंकड़ों के लिहाज से बेशक युवा हो पर उनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा कुपोषित है और यह अनुपात लगातार बढ़ता ही जा रहा है। देश में सबसे ज्यादा तेजी से फूड इंडस्ट्री ही बढ़ी है। लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा और खबड़ों में कुछ नया खाने का जोश इन्हें रोज नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है। देश में भोजन की गुणवत्ता भी भगवान भरोसे है। इसके लिए बने विभाग साल में एक दो बार अपनी उपस्थिति मात्र दर्शाते हैं। होली-दिवाली पर नकली खोवा और मिलावटी तेल-घी पकड़कर ये अपने कत्र्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। लिहाजा कुछ लोग इसलिए कुपोषित हैं कि उनके पास खाने को नहीं है तो वहीं कुछ इसलिए कि उनके पास तमीज नहीं है।
Gustakhi Maaf: सुपोषित-कुपोषित और आदत से लाचार
