-दीपक रंजन दास
लाइफ स्टाइल चेंजेस के कारण एक तरफ जहां प्राकृतिक संसाधन भारी दबाव में हैं वहीं खतरनाक कचरे का ढेर भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें प्लास्टिक कचरे से लेकर ई-कचरे तक सबकुछ शामिल है। इसमें भी सबसे ज्यादा कचरा पैक्ड खाने के सामान से निकलता है। भोजन के बदले पैटर्न के चलते अब बड़ी संख्या में लोग भोजन आर्डर करने लगे हैं। पुराने मोबाइल फोन्स, पुरानी टीवी, सामान्य से लेकर स्टीरियो साउंड सिस्टम के अलावा भी कई प्रकार के इलेक्ट्रानिक वेस्ट आज हर घर में अलग-अलग रूपों में मौजूद है। जिन सामानों को लोग बड़े शौक से हजारों रुपए खर्च कर खरीद लाए थे, अब उनकी उपयोगिता भले ही न हो, पर उन्हें फेंकते भी नहीं बनता। अभी थोड़े दिन पहले दीपावली सफाई में ऐसा काफी कुछ लोगों ने नगर निगम के कचरा ले जाने वालों को दे दिया जो ई-वेस्ट की श्रेणी में आता है। राजधानी रायपुर की ही बात करें तो यहां प्रतिवर्ष करीब 2500 टन ई-वेस्ट पैदा होता है। पर इस कचरे का केवल 10 प्रतिशत ही रीसाइक्लिंग के लिए पहुंचता है। वहां ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग की व्यवस्था है। अन्य शहरों में तो ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग की कोई व्यवस्था तक नहीं है। लगभग यही हाल पुराने वाहनों का है। लोग इन्हें मैकेनिक के पास छोड़ कर चले जाते हैं। ये गाडिय़ां वहीं सड़-गल कर मिट्टी में मिल जाती हैं। पुलिस के डर से इनमें से अधिकांश गाडिय़ों को कबाड़ी छूने से भी डरते हैं। कबाड़ के इन पहाड़ों से कीमती धातुओं को अलग किया जा सकता है। प्लास्टिक, रबर और सड़े हुए धातु का इस्तेमाल दीगर कार्यों में किया जा सकता है। हाल ही में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वे बता रहे थे कि किस तरह से उन्होंने कबाड़ का उपयोग एक्सप्रेस-वे बनाने में कर दिया और कचरे के ढेर का निपटान भी हो गया। जरूरत न केवल ऐसी तकनीक का अधिकाधिक इस्तेमाल करने की है बल्कि पुलिस और कबाड़ी के संबंधों को भी नए सिरे से परिभाषित करना होगा। जब तक कबाड़ का धंधा हुज्जत और बेइज्जती से जुड़ा रहेगा, रीसाइक्लिंग उद्योग आगे नहीं बढ़ सकता। सबसे बड़ी समस्या ई-वेस्ट कलेक्शन की है। देखने में सुन्दर इन अनुपयोगी वस्तुओं के लेवाल नहीं है। इसलिए ये घरों में जमा पड़े हैं। सफाई के समय इन्हें यूं ही उठाकर बाहर फेंक दिया जाता है। इसमें मोबाइल फोन, स्टीरियो, हेडफोन, वाईफाई, सेट-टॉप बक्से से लेकर टीवी और ऑडियो में इस्तेमाल होने वाले गैजेट्स, सब-कुछ शामिल है। इसके अलावा लोग दवाइयों को लेकर भी संजीदा नहीं है। बची हुई दवाइयों को लोग कहीं भी फेंक देते हैं। ये सभी प्रकृति, पर्यावरण और स्वयं इंसान के लिए खतरनाक हैं। इनका प्रबंधन किया जाना जरूरी है। दरअसल, वक्त का तकाजा है कि वेस्ट रीसाइक्लिंग को देश गंभीरता से ले। बेशक ये प्रक्रिया महंगी है पर उपयोगिता की दृष्टि से भी यह जरूरी है।
Gustakhi Maaf: बढ़ता ही जा रहा खतरनाक कचरे का ढेर




