-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ विधानसभा निर्वाचन 2023 में मतदान अपेक्षा से कम ही रहा है। पिछले चुनाव के मुकाबले लगभग एक फीसदी कम लोगों ने मतदान किया है। दूसरे चरण में 70 सीटों पर 75.08 प्रतिशत वोटिंग हुई। 2018 में मतदान का यह प्रतिशत 75.17 था. इस बार सबसे कम 65.45 प्रतिशत रायपुर में और सबसे ज्यादा धमतरी में 84.23 प्रतिशत मतदान हुआ है। नक्सल प्रभावित 9 बूथों पर 91 प्रतिशत वोटिंग हुई है। बड़े जिलों की बात करें तो दुर्ग में 71.59, बिलासपुर में 67.35, रायगढ़ में 83.92 और सरगुजा में 80.18 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इन आंकड़ों की तुलना 2018 के आंकड़ों से करने पर ज्यादा अंतर दिखाई नहीं देता। पर यदि हालातों के आधार पर आंकलन करें तो मतदान अपेक्षा से काफी कम हुआ है। इस बार मतदान तिथि दीपावली-छठ के दरम्यान थी। अर्थात अवकाश के कारण अधिकांश लोग अपने-अपने गांव-घर या निर्वाचन क्षेत्रों में ही थे। दूसरे शहरों या राज्यों में अध्ययनरत बच्चे भी घर आए हुए थे। दूसरे राज्यों में नौकरी करने वाले भी छुट्टियों में आए हुए थे। मौसम भी बढिय़ा था। लोग सुबह से ही बूथों में पहुंचने लगे थे। सभी वर्गों के मतदाताओं को रिझाने के लिए ढेरों मुद्दे थे। धान मूल्य, मुफ्त बिजली, ऋण माफी, केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा, महिलाओं को रेवड़ी के अलावा सीएम और पीएम के फैन्स की भी बड़ी संख्या थी। ऐसे में मतदान प्रतिशत को काफी ज्यादा होना चाहिए था। फिर मतदान कम क्यों हुआ? दरअसल, निर्वाचन आयोग ने सुव्येवस्थित मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचक सहभागिता (स्वीप) कार्यक्रम के तहत जोर-शोर से मतदान को लेकर प्रचार तो किया पर विद्यार्थियों के मतदाता के रूप में पंजीयन पर ज्यादा जोर नहीं दिया। बड़ी संख्या में विद्यार्थी वोट डालने के नारे तो लगाते रहे पर उनका स्वयं का नाम वोटर लिस्ट में दर्ज होने से रह गया। मौजूदा दौर में हाईस्कूल से लेकर पीजी तक में अध्ययनरत अधिकांश विद्यार्थियों का पूरा फोकस कोर्स और प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रति होता है। मतदाता पंजीयन और रोजगार पंजीयन जैसी बातें उनके जेहन में आती ही नहीं है। ये दो काम केवल वही विद्यार्थी कर पाते हैं जिनके माता पिता उनके पीछे पड़ जाते हैं। शहरों से लेकर गांवों तक मतदान का जो पैटर्न रहा है, वह यह बताने के लिए काफी है कि चुनाव में भाग ले रहे दल, शहरी मतदाताओं को आकर्षित करने में विफल रहे हैं। धान की कीमतों ने जहां किसानों और किसान परिवारों को भारी भरकम मतदान के लिए उकसाया वहीं महिलाओं के लिए घोषित 12-15 हजार रुपए सालाना का भी जादू चल गया प्रतीत होता है। मुफ्त शिक्षा और मुफ्त बिजली का भी कुछ तो असर रहा ही होगा। बहरहाल, फिलहाल सभी दल सांस रोके 3 दिसम्बर का इंतजार कर रहे हैं। अब बहस इसपर होने लगी है कि क्या इस चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव का आभास देंगे? क्या मोदी गारंटी काम कर जाएगा?
Gustakhi Maaf: उम्मीद से कम रहा मतदान का प्रतिशत




