-दीपक रंजन दास
देश के एक बड़े तबके का मानना है कि राजनीति में रेवड़ी बांटने की परम्परा का अंत होना चाहिए। उनका मानना है कि इससे देश के एक बड़े वर्ग पर निठल्लापन हावी हो रहा है। बैठे-बिठाए खाने-पीने का जुगाड़ हो जाए तो फिर मेहनत कौन करना चाहेगा। किसानों को खेतीहर मजदूर नहीं मिल रहे, भवन निर्माण ठेकेदार भी कहते हैं कि अब सस्ते में लेबर नहीं मिलता। असंतोष की यह लहर नौकरीपेशा वर्ग को भी प्रभावित कर रही थी। उनका भी मानना था कि उनके टैक्स के पैसे से गरीबों की ऐश हो रही है। रेवडिय़ों के कारण उद्यमिता हतोत्साहित होती है। यह वर्ग अब तक भाजपा का फैन था। भाजपा सिद्धांतत: रेवड़ी बांटे जाने के खिलाफ रही है। पर अब उसे भी समझ में आ गया है कि रेवडिय़ां देश की संस्कृति है। शादी-ब्याह से लेकर तीज-त्यौहारों तक में गिफ्ट और रिटर्न गिफ्ट लिया और दिया जाता है। यहां तक कि पूजा-पाठ भी इसका अपवाद नहीं है। पूजा पंडाल में भीड़ जुटानी हो तो भी भोग-भंडारा करना पड़ता है। लोग देवी के दर्शन करने कम और खिचड़ी खाने ज्यादा आते हैं। इसे हम रेवड़ी नहीं व्यवहार कहते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि सरकारी दफ्तरों में काम करवाने के लिए दिया जाने वाला पैसा। कुछ लोग इसे घूस कहते हैं पर जिन्हें इन विभागों से रोज-रोज काम पड़ता है, वो जानते हैं कि यह व्यवहार है। गाड़ी केवल पेट्रोल और डीजल से नहीं चलती, उसके इंजन में भी तेल डालना होता है। टायर ट्यूब वाले हों या ट्यूबलेस, उसमें हवा भरनी होती है। व्यवहार बनाए रखने के कई लाभ होते हैं। व्यवहार बना रहे तो कामकाज नहीं अटकता, सूचनाएं समय पर मिल जाती हैं। लोग आपका सहयोग करने लगते हैं। यही बात चुनावों पर भी लागू होती है। इस बार सभी पार्टियों ने किसानों के साथ-साथ महिलाओं और युवाओं के लिए रेवडिय़ां तय कर दीं। धान की कीमतों में 33 फीसदी के ज्यादा बढ़ोत्तरी की घोषणा की गई। महिलाओं को मुफ्त में प्रति माह हजार या इससे भी अधिक रुपए देने की घोषणा की गई। युवाओं को कालेज तक आने-जाने के लिए मुफ्त परिवहन सेवा और नौकरियों की गारंटी दी गई। कांग्रेस ने तो ऋण माफखी के ब्रह्मास्त्र का भी उपयोग कर लिया। किसानों के साथ ही अब महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा लिये गये ऋण को भी माफ करने की घोषणा की गई है। अब तक के आंकड़े बताते हैं कि महिला स्व-सहायता समूह ही वह इकलौता वर्ग था जिससे बैंकर्स खुश थे। सामूहिक जिम्मेदारी के तहत इनकी लोन री-पेमेंट सबसे अच्छी थी। यह एक उद्यमिता आंदोलन की तरह आगे बढ़ता रहा है। इन्हीं घोषणाओं के आधार पर अब मतदाताओं को सरकार चुननी है। देखना सिर्फ यह है कि किसकी घोषणा पर लोग यकीन करते हैं। अब जनता भी यह जानती और मानती है कि सरकारें ऐसे कर सकती हैं, बस उसकी नियत साफ होनी चाहिए।