-दीपक रंजन दास
लोकतंत्र के स्वास्थ्य के भी अपने पैमाने होते हैं. सबसे बड़ी चुनौती होती है शत प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करना. इसके लिए न केवल मतदाताओं के बीच जागरूकता लाने की कोशिशें होती हैं बल्कि उनके लिए मतदान प्रक्रिया को सरल और संभव बनाने की भी कोशिशें की जाती हैं. इस लिहाज से छत्तीसगढ़ में इस साल निर्वाचन प्रक्रिया ने एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. बस्तर की 12 अतिसंवेदनशील सीटों में इस बार 126 नए बूथ बनाए गए. पहली बार बनाए गए इन बूथों में भारी मतदान हुआ. चित्रकोट के कलैपाल में 2018 में 3.68 के मुकाबले इस बार 65.30 प्रतिशत मतदान हुआ. केशकाल में कुए व भंडारपाल बूथ में क्रमशः 72.41 और 83.69 प्रतिशत मतदान हुआ. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां मतदान ही नहीं हुआ था. जगदलपुर के चांदामेटा नए बूथ में 62.90 प्रतिशत मतदान हुआ. कांकेर के चार नए बूथों चिवराज में 90.45, पथरी नाला में 92.20, महेशपुर में 96.09 और रावस में 91.13 प्रतिशत वोट पड़े. कोंटा के मानकापाल में पिछले विधानसभा चुनाव के 7.61 प्रतिशत के मुकाबले इस बार 70.02 प्रतिशत मत पड़े. करिगंडम में भी मतदान 1.98 से बढ़कर 68.22 प्रतिशत हो गया. इस बार चुनाव कार्यों में महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई. मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सीनियर आईएएस रीना बाबा साहब कंगाले के नेतृत्व में कराए जा रहे निर्वाचन में पांच जिलों में चुनाव की जिम्मेदारी महिलाओं पर है. इनमें सारंगढ़ में फरिहा आलम सिद्दीकी, जांजगीर-चांपा में ऋचा प्रकाश चौधरी, कांकेर में डॉ प्रियंका शुक्ला, सक्ती में नूपुर पन्ना राशिऔर पेंड्रा -गौरेला- मरवाही में प्रियंका ऋषि महोबिया पर निर्वाचन का मुख्य भार है. सीईओ कार्यालय में अतिरिक्त सहायक मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की कमान शारदा अग्रवाल, रश्मि वर्मा और अर्चना पांडे, तहसीलदार डॉ. अंजली शर्मा सहित कई महिलाओं ने संभाल रखी है. वित्तीय कार्य संयुक्त संचालक वित्त कामना सराफ व उप संचालक अदिति वासनिक कर रही है. शारदा अग्रवाल एमसीएमसी का कार्य देख रहीं हैं. पहले चरण के मतदान में 21 रिटर्निंग अधिकारी, 36 सहायक रिटर्निंग अधिकारी समेत 16 हजार 808 महिला मतदान कर्मी भी शामिल थीं. 2794 पीठासीन अधिकारी व सहायक पीठासीन अधिकारी महिलाएं हैं. मीडिया सेल की कमान रचना दुबे, मीरा पाठक, प्रीति पंड्या ने संभाली वहीं मंजुल वी जॉन, देवयानी शुक्ला, तृप्ति विश्वनाथ, निशा मिश्रा, डॉ. अल्पना तिवारी, वर्षा रानी गुप्ता ने ट्रांसलेटर की जिम्मेदारी संभाली. 900 संगवारी बूथों पर सभी कार्य महिलाओं ने संपादित किया. निर्वाचन प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी तो इसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ा. आम धारणा है कि लोग बढ़चढ़कर मतदान तब करते हैं जब उन्हें सरकार बदलनी हो. पर यह केवल आधा सच है. मतदान तब भी अधिक होता है जब मतदान के लिए स्थितियां अनुकूल हों. पहली बार बनाए गए बूथों में हुआ भारी भरकम मतदान इसकी पुष्टि करता है. उम्मीद है कि समतल के शहरी क्षेत्रों में भी यह रुझान बरकरार रहेगा. ऐसा हुआ तो यह छत्तीसगढ़ की एक और उपलब्धि होगी.
Gustakhi Maaf: एक कदम और आगे बढ़ा लोकतंत्र
