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Business

पहली पीढ़ी के उद्यमियों को सशक्त बनाती सथवारो पहल

By Om Prakash Verma Published October 31, 2023
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पहली पीढ़ी के उद्यमियों को सशक्त बनाती सथवारो पहल
पहली पीढ़ी के उद्यमियों को सशक्त बनाती सथवारो पहल
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अदाणी फाउंडेशन की सथवारो पहल कारीगरों के उत्थान में मदद करते हुए भारत की कला और शिल्प कौशल को संरक्षित करने की दिशा में काम कर रही है। “हम तब तक लगभग अदृश्य थे जब तक हमारे काम ने हमारे लिए बोलना शुरू नहीं किया था, या यूं कहें तब तक हमारे पास कोई आवाज नहीं थी।” ये शब्द तमिलनाडु में पोन्नेरी तालुका की कोट्टईकुप्पम पंचायत में जमीलाबाद के बिस्मी समूह की मुस्लिम महिलाओं के हैं।

इस दक्षिणी राज्य में जमीलाबाद एक छोटा सा गाँव है और मछली पकड़ने वाले मुस्लिम समुदाय का घर है। इस गांव के निवासियों का मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना है। इस समुदाय को उन महीनों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जब मछली पकड़ने पर प्रतिबंध होता है, क्योंकि उनके पास आय का कोई अन्य साधन या स्रोत उपलब्ध नहीं होता है। महिलाएं, जो शायद ही कभी अपने घरों से बाहर निकलती हैं, अपने खाली समय में ताड़ के पत्तों से छोटी-छोटी वस्तुएं बनाती हैं, जिससे उन्हें मुश्किल से ही पैसे मिलते हैं।

हालाँकि, अदाणी फाउंडेशन द्वारा इस क्षेत्र में काम शुरू करने के बाद बदलाव की बयार चलना भी शुरू हो गई है। फाउंडेशन टीम ने बिस्मी महिलाओं की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें जुलाई 2022 में एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाने में मदद की। इसके तुरंत बाद, 14-सदस्यीय समूह की स्किल ट्रेनिंग शुरू हो गई। फाउंडेशन ने आजीविका संवर्धन परियोजना के तहत 70,000 रुपये की सामग्री के रूप में भी समर्थन भी दिया। और देखते ही देखते फुर्तीली उंगलियाँ ताड़ के पत्तों से सुंदर कलाकृतियाँ बनाने लगीं।

फातिमा कहती हैं, “हमें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि हम अपने तटीय गांव में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पत्तियों से शॉपिंग बैग, लंच और चॉकलेट बॉक्स, मैट, ट्रे इत्यादि जैसी चीजें बना सकते हैं।” उत्साहपूर्वक उन्होंने कहा, “जुलाई और सितंबर 2023 के बीच हमने 1,20,000 रुपये कमाए।” एक नए आत्मविश्वास ने बिस्मी महिलाओं को सशक्त बनाने का काम किया है, जो खुश हैं कि वे अपने परिवार की आय में योगदान देने में सक्षम हो सकी हैं। वे अपने गांव में अपना उद्यम शुरू करने वाले पहले व्यक्तियों में हैं।

अदाणी फाउंडेशन अपने साथवारो यानी एक साथ पहल के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप कारीगरों के उत्थान के साथ-साथ भारत की कला और शिल्प की समृद्ध विरासत को भी संरक्षित करने की दिशा में काम कर रहा है। यह कारीगरों को डिजाइन डेवलपमेंट में मदद करता है ताकि वे बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन कर सकें। यह पहल कारीगरों को अपने उत्पाद बेचने में मदद करने के लिए बाजार संपर्क बनाने में भी सहायता प्रदान करती है।

विज्हिंजम में, अब्दुल रेहमान को तब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, जब उनके प्रोडक्ट्स को मार्केट स्टैंडर्ड्स पर खड़ा न उतरने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था। स्कूल छोड़ने के बाद, कोकोनट शेल हेंडीक्राफ्ट व्यवसाय पर उन्हें गर्व था, जिसे उन्होंने खुद बनाया था। अपने प्रोडक्ट्स के तौर पर वे बरतन, टेबलवेयर, बगीचे और सजावट की लगभग 40 वस्तुएँ बनाते हैं, जिनके बाज़ार में अच्छे दामों पर बिकने की उम्मीद होती है। लेकिन बाजार में प्रतिस्पर्धा तेज होने के कारण इनके प्रोडक्ट्स की चमक जल्द ही फीकी पड़ने लगी। इसके बाद उन्होंने फाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों में भाग लेना शुरू कर दिया, जिसने विज्हिंजम पोर्ट क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया था। प्रदर्शनियों में, उन्होंने मार्केटिंग और क्वालिटी कण्ट्रोल के महत्व को सीखा, जिससे उन्हें डिजाइन की सटीकता और एक्सपोर्ट स्टैंडर्ड्स के बराबर क्राफ्ट आइटम्स की क्वालिटी बनाए रखने में मदद मिली। एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के लिए पोर्ट परिसर में आयोजित सथवारो प्रदर्शनी ने नए चैनल खोले, जिससे उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले कोकोनट शेल आइटम का उत्पादन करने के लिए नई ऊर्जा मिली।

रहमान, जिन्होंने पहले तो जीवन के शुरूआती पड़ाव में ही अपने पिता को खो दिया, और फिर फुटबॉल खेलते समय एक अजीब दुर्घटना का शिकार हो गए, जिससे उनका एक अंग विकृत हो गया, लेकिन वह लगातार चुनौतियों का डटकर सामना करते रहे। पहली पीढ़ी के इस उद्यमी को जीवन में बहुत पहले ही एक प्रेरणा मिल गई और सथवारो पहल ने उनके जुनून को एक नई दिशा देने का काम किया।

नेल्लोर के मुथुकुरु गांव की रहने वाली सोगा मैरी सामान्य नर्सिंग और मिडवाइफरी (जीएनएम) प्रमाणपत्र के साथ ग्यारहवीं कक्षा पास है। उनके पति एक ऑटो-रिक्शा चालक हैं और अपने बच्चों व सास-ससुर सहित परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं। जीवन कठिन था क्योंकि काम करने और अपने पति को घर चलाने में मदद करने की उनकी हर इच्छा को उनके ससुराल वालों से ठंडी प्रतिक्रिया मिलती थी। वे कभी नहीं चाहते थे कि वह बाहर जाकर काम करें।

इसलिए, उन्होंने अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में लेने और अपना खुद का कुछ शुरू करने का फैसला किया। अदाणी फाउंडेशन ने कृष्णापट्टनम पोर्ट एरिया में काम शुरू कर दिया था और जब उन तक यह बात पहुंची कि वे उनके जैसे लोगों को अपना उद्यम शुरू करने के लिए समर्थन दे रहे हैं, तो उन्होंने उनसे संपर्क किया। मैरी कहती हैं, “मैं बांस शिल्प बनाना जानती थी और घर से अपना खुद का उद्यम शुरू करना चाहती थी।” हालाँकि, उसके पास बांस की छड़ें, हैंडल के लिए तार और उन वस्तुओं को बनाने के लिए आवश्यक अन्य उपकरण खरीदने के पैसे नहीं थे, जिनमें वह माहिर थी।

फाउंडेशन ने मैरी को माइक्रो-एंटरप्राइज शुरू करने के लिए थोक में आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने में मदद की। मैरी, जिन्होंने अपने लिए एक सम्मानित जीवन बनाया है, कहती हैं, “जब मुझे अपना पहला भुगतान मिला तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज, मैं बांस की टोकरियाँ, लाइट कवर, ट्रे, फूलों की टोकरियाँ आदि जैसी हैंडीक्राफ्ट वस्तुएं बेचकर प्रति माह 6,000 रुपये कमाती हूं। इससे मुझे बहुत आत्मविश्वास मिला है क्योंकि मैं घरेलू खर्च में योगदान करने और हर महीने अपने भविष्य के लिए एक अच्छी रकम बचाने में सक्षम हूं।”
फाउंडेशन 1 और 2 नवंबर 2023 को मैरी जैसे कई पहली पीढ़ी के उद्यमियों को अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने के लिए एक प्रभावशाली मंच देने के उद्देश्य से अदाणी कॉरपोरेट हाउस में सथवारो मेले का आयोजन कर रहा है।

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