-दीपक रंजन दास
राजनीति में धर्म और आस्था के घालमेल का घड़ा अब भर चुका है। ऐसा नहीं है कि यह घालमेल गलत है पर जिस तरह से लोगों की धार्मिक भावनाओं का फायदा चतुर नेता उठा रहे थे, वह ठीक नहीं था। धर्म की आड़ में नेता अपनी हर ऐब को छिपा जाते थे। अकसर उनके हरकतें और बातें असंवैधानिक होने की हद को छूने लगती थी। पर सत्ता में बैठे आदमी के सात खून माफ हो जाते थे। चुनाव मंदिर-मस्जिद-चर्च के नाम पर लड़े जाते। नेता जीतकर फार्चूनर में जा बैठता पर पुजारी-पुरोहित, पास्टर-पादरी, मौलवी की हालत जस की तस रह जाती। मंदिर-मस्जिद-चर्च के सेवादार काफी समय से मन मसोसकर इस खेल को देख रहे थे। पर अब लगता है इसका पटाक्षेप होने वाला है। उज्जैन से एक संत ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। वैसे भी यदि वोट भगवान के नाम पर ही मांगा जाना है तो इसका पहला हक साधु-संतों, पंडे-पुजारियों का होना चाहिए। उज्जैन के क्रांतिकारी संत परमहंस अवधेशपुरी महाराज ने ठीक ऐसा ही किया है। वे भाजपा से टिकट मांग रहे थे। टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। वे 28 अक्टूबर को अपना नामांकन दाखिल करने जा रहे हैं। संत ने कहा है कि वे तथा उनके जैसे सैकड़ों संत आरंभ से ही भाजपा का समर्थन करते आ रहे हैं। पर भाजपा ने उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। इसलिए महाकाल की नगरी के संतों ने मिलकर फैसला किया है वे स्वयं चुनाव लड़ेंगे। इसकी शुरुआत उज्जैन दक्षिण की सीट से होगी। आने वाले चुनावों में और भी संत ऐसा कर सकते हैं। अवधेशपुरी महाराज ने कहा है कि इस धार्मिक पार्टी ने मध्यप्रदेश के राजवाड़ा से रामायण में आग लगाने वाले और रावण का मंदिर बनवाने वालों को तो टिकट दिया है किन्तु रामायण पर पीएचडी व हिन्दू मठ मंदिरों के लिए लडऩे वाले संत को नहीं। जब उन्होंने यह बातें कहीं तो यह देशभऱ के लिए खबर बन गई। 16 सितंबर 2023 को स्वास्तिक पीठ के पीठाधीश्वर एवं उज्जैन के क्रांतिकारी संत डॉ। अवधेशपुरी महाराज ने संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि जब धर्म राजनीति के केन्द्र में आ गया हो तो ऐसे समय में संतों को राजनीति की मूलधारा से जोडऩा चाहिए। साथ ही सवाल उठाए थे कि भाजपा के 20 वर्षों के शासनकाल में सिंहस्थ क्षेत्र में अतिक्रमण क्यों हुआ? उज्जैन पवित्र नगरी घोषित क्यों नहीं हुई? क्षिप्रा मैली क्यों है? महाकाल मन्दिर में भक्तों से दर्शन शुल्क क्यों? वीआईपी का सम्मान व सन्तों का अपमान क्यों? सिंहस्थ व धर्मनगरी के नेतृत्व में सन्तों की उपेक्षा क्यों? सप्त सागर एवं 84 महादेव की उपेक्षा क्यों? धार्मिक सरकार द्वारा संतों के लिए एक भी योजना क्यों नहीं? ऐसे दर्जनों सवालों पर सरकार चुप रही। इसलिए अब संतों स्वयं खुलकर सामने आ गए हैं।
Gustakhi Maaf: आखिर कब तक ठगे जाते पंडा-पुरोहित
