-दीपक रंजन दास
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने सवाल किया है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार आते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया गया था। अब पांच साल में ऐसा क्या हो गया कि दोबारा किसानों का कर्ज माफ करने की नौबत आ गई। साथ ही उन्होंने कहा कि भूपेश अब गरीबों के लिए 17 लाख आवासों का वायदा कर रहे हैं। इन्हीं आवासों के लिए विधानसभा का घेराव करने पहुंचे भाजपा कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने लाठियां बरसाई थीं। इनमें से पहला सवाल अच्छा है। क्या खेती किसानी वास्तव में इतने जोखिम का काम है कि किसान को बार-बार कर्ज लेने की जरूरत पड़ती है? आखिर क्यों ऐसा होता है कि खुशहाल किसान कर्ज नहीं पटा पाता। तगादों से घबराकर विभिन्न प्रांतों में किसान आत्महत्या करते रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कर्जमाफी की योजना का लाभ केवल बड़े किसानों को मिलता है। इसका उपयोग उन्नत कृषि को अपनाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किया जाता है। कृषि में हो रहे परिवर्तन भी निवेश मांगते हैं। इनका लाभ मिलते-मिलते ही मिलता है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अधिकांश किसान कृषि ऋण लेकर अपने शौक पूरे करते हैं। कर्ज की तीन चौथाई राशि वे दीगर मदों में खर्च कर डालते हैं। कृषि की कमाई से इसे लौटाना संभव नहीं होता। इसलिए साल दर साल वह कर्जदार बना रहता है। उनका यह भी मानना है कि कर्जमाफी की बजाय सरकारों को किसानों की समस्या का स्थाई समाधान ढूंढना चाहिए। इस लिहाज से पूर्व मुख्यमंत्री का सवाल सही लगता है। पर यह पूरा सच नहीं है। कर्जमाफी का एक लंबा इतिहास है। सबसे पहले 1990 में वीपी सिंह सरकार ने देश भर के किसानों का कर्ज माफ कर दिया था। इसके बाद साल 2008-09 के बजट में मनमोहन सिंह सरकार ने पूरे देश में किसानों के करीब 71 हजार करोड़ रुपए माफ करने का फैसला लिया था। इसके बाद यूपीए आसानी से सत्ता पर काबिज हो गई थी। इसके बाद कर्जमाफी का वादा राजनीतिक दलों के लिए सत्ता पाने का ब्रह्मास्त्र बन गया। साल 2014 से लेकर अबतक करीब दस राज्य सरकारें किसानों की कर्जमाफी का एलान कर चुकी हैं। वित्तीय मामलों के जानकारों का मानना है कि कृषि ऋण देने के तौर तरीकों में बदलाव किये जाने की जरूरत है। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कर्ज की राशि का उपयोग कृषि कार्यों के लिए ही किया जा रहा है। इससे किसानों पर कर्ज का बोझ कम होगा और वे आसानी से ऋण चुका पाएंगे। अन्यथा वह हमेशा कर्जमाफी की बाट जोहते रहेंगे, जो किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं है। रमन सिंह ने एक मामला गरीबों के आवास का भी उठाया है। इन आवासों में केन्द्र और राज्य सरकार की 60:40 की भागीदारी होती है। राज्य और केन्द्र की प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं। एक ही कार्यकाल में सबकुछ संभव नहीं होता।