सिंगल नाम फंस गए पैनल में, फिर बैठेगी स्क्रीनिंग कमेटी, दिल्ली से ही होगा फैसला

भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़ डेस्क)। कहते हैं कि मौत और कांग्रेस की टिकट का कोई भरोसा नहीं है। बात सौ फीसद सच साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ में ब्लॉक से लेकर प्रदेश स्तर तक की गई पूरी कवायद बेकार गई है। स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अजय माकन की मौजूदगी में कल सीएम हाउस में बैठक हुई तो प्रदेश के कई बड़े नेताओं के होश उड़ गए। माकन अपने साथ दिल्ली से उम्मीदवारों की सूची लेकर आए थे। अब तक दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस में 30-35 नाम तय कर लिए गए हैं, जिनकी घोषणा 8 सितम्बर के बाद कभी भी कर दी जाएगी, लेकिन माकन की मौजूदगी में हुई बैठक के बाद उन तमाम नामों पर नए सिरे से पुनर्विचार किया गया। दिल्ली के नामों और स्थानीय सूची में एकरूपता का अभाव था, ऐसे में बहुत सारी सीटों पर आम सहमति नहीं बन पाई। कांग्रेस की पहली सूची के लिए इंतजार और लम्बा हो गया है।

जो नेता अपनी टिकट पक्की मानकर मैदान में उतर चुके थे, उनके लिए अजय माकन की मौजूदगी में हुई बैठक से बुरी खबर निकलकर आई है। कल देर रात तक चली स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में पहली सूची के लिए नामों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। जबकि माना जा रहा था कि ब्लाक से प्रदेश स्तर तक की कवायद के बाद निकले नामों पर अंतिम मुहर लग जाएगी। बताया जाता है कि कांग्रेस आलाकमान ने सभी 90 सीटों के लिए अपने स्तर पर सर्वे करवाया था। माकन इसी सर्वे की एक पूरी लिस्ट लेकर आए थे। बेनतीजा खत्म हुई कल की इस बैठक के बाद अब यह दावा किया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ स्तर पर जिन नामों को फायनल मान लिया गया था, उनमें कई बदलाव किए जा सकते हैं। बैठक के बाद यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी नेता को मुगालते में नहीं रहना चाहिए। केन्द्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक के बाद ही यह तय हो पाएगा कि किस सीट से कौन प्रत्याशी होगा।

स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में माकन के अलावा सीएम भूपेश बघेल, प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी कुमारी सैलजा, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, पीसीसी चीफ दीपक बैज के अलावा कमेटी के सदस्य एल हनुमंथैया और नेटा डिसूजा भी उपस्थित थे। बताया जाता है कि बैठक शुरू होते ही सिंगल सीटों पर आए नामों पर चर्चा शुरू हुई। यह चर्चा लम्बी खिंचती चली गई। तय किया गया कि सिंगल नामों को पैनलाइज किया जाएगा। इस तरह जहां-जहां सिंगल नाम तय किए गए थे, वहां-वहां और दावेदारों के नामों को भी जोड़ दिए गए। बताते हैं कि माकन जो सूची लेकर आए थे, उसमें प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से 2-2 नाम शामिल थे। माकन समेत स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों का सवाल था कि आखिर सिंगल नामों का पैनल कैसे तैयार किया गया? और बाकी के दावेदारों को किस आधार पर किनारे लगा दिया गया?
2018 में भी पैनल में फंसे थे सिंगल नाम
2018 में भी कमोबेश ऐसे ही हालात थे। पार्टी ने ब्लाक से लेकर प्रदेश स्तर तक की लम्बी कवायद के बाद सिंगल नाम तय किए, लेकिन आलाकमान तक पहुंचते-पहुंचते इन नामों को पैनल में फंसा दिया गया। हालांकि 2018 के नतीजे पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में आए थे। तब कांग्रेस ने 90 सीटों वाले इस छोटे राज्य में कुल 72 सीटों पर अभूतपूर्व विजय दर्ज की थी। लेकिन बार स्थितियां इसलिए जुदा है, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार है। ऐसे में प्रत्याशियों को लेकर उठाया गया एक त्रुटिपूर्ण कदम नतीजों को प्रभावित कर सकता है। कई तरह के सर्वे की रिपोर्ट इशारा कर रही है कि इस चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के बीच लगभग बराबरी का मुकाबला है। हालांकि कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में वापसी को लेकर आश्वस्त है। भाजपा भी यह उम्मीद कर रही है कि 2018 के विपरीत इस बार सत्ता उसके हाथ में होगी।
इन अहम् मसलों पर हुई गहन चर्चा
स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में कई अहम् मुद्दों पर प्रमुखता से चर्चा की गई। माकन ने यह सवाल उठाया कि जिन सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, वहां वर्तमान में क्या स्थिति है? क्या विधायक के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी तो नहीं है? यदि है तो किस तरह का प्रत्याशी देकर स्थितियों को अनुकूल किया जा सकता है। कमेटी के सदस्यों ने यह भी पूछा कि भाजपा किन मुद्दों को लेकर मैदान में उतरने जा रही है और कांग्रेस के पास उसका क्या तोड़ है? पूर्व सीएम डॉ. रमन क्या चुनाव लड़ेंगे, यदि हाँ तो कहां से और क्या स्थिति होगी। बैठक में चुनावी मुद्दों को लेकर भी चर्चा होने की खबर है। मसलन धान खरीदी इस बार दोनों ही दलों के लिए प्रमुख मुद्दा होगा। इसके अलावा मोदी सरकार की नीतियों का राज्य में कितना असर होगा और प्रदेश सरकार की नीतियों का कितना लाभ मिल पाएगा। इस दौरान पूरे राज्य में सरकार के प्रदर्शन पर भी खासतौर पर बातचीत हुई।
10 दिन टल गई प्रत्याशियों की घोषणा?
स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में पहले से तय किए गए नामों पर पूर्ण सहमति नहीं बन पाई। अंत में यह बैठक बेनतीजा ही खत्म हो गई। इससे पहले यह तय किया गया कि फिलहाल प्रत्याशियों की पहली सूची जारी नहीं की जाएगी। स्क्रीनिंग कमेटी फिर से बैठेगी और एक-एक नामों पर फिर से विचार किया जाएगा। इसके बाद तैयार सूची को सीईसी को भेजा जाएगा। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि 2018 की तर्ज पर इस बार भी टिकट के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई, वह सिर्फ कार्यकर्ताओं को चार्ज करने चुनावी माहौल तैयार करने के लिए है। टिकट का फैसला तो हमेशा आलाकमान ही करता है। अलबत्ता, एक पूरी प्रक्रिया अपनाने से स्थानीय कार्यकर्ताओं का एक रूझान जरूर मिल जाता है। सूत्रों के मुताबिक, भले ही वरिष्ठ नेता रवीन्द्र चौबे ने दावेदारों को दिल्ली दौड़ लगाने से बचने की सलाह दी हो, लेकिन दिल्ली दौड़ से कई बार प्रत्याशियों को बदलते देखा गया है। फिलहाल क्योंकि नामों को लेकर अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है, इसलिए संभावना जाहिर की जा रही है कि पहली सूची के लिए करीब 10 दिन और विलम्ब हो सकता है।