-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में मतदाता सूची का पुनरीक्षण चल रहा है। इसमें बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता भी शामिल हैं जिनका जन्म ब्रिटिश भारत में हुआ था। आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में भी इन्होंने मतदान किया था। इन्होंने भारत के सभी प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल देखा है। ये राज्यों के बनते-बिगड़ते नक्शे और तमाम राजनीतिक जोड़तोड़ के प्रत्यक्षदर्शी हैं। इन्होंने वह भारत भी देखा है जो अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा था और यह भारत भी देख रहे हैं जो आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है। उन्होंने भाईचारे का दौर भी देखा और नफरत की फसल भी देख रहे हैं। उन्होंने उस भारत को भी देखा है जिसने तिल-तिल कर खुद को गढ़ा और आज एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनकर खड़ा है। वे उस भारत को भी देख रहे हैं जो इस भारत को अब सिर्फ अपने लिये चाहता है। ऐसे लोग सिर्फ छत्तीसगढ़ नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी बड़ी संख्या में हैं। छत्तीसगढ़ में पिछले चुनाव के दौरान शतायु लोगों की संख्या 2948 थी। इस साल संख्या कुछ कम हुई है पर मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य अभी जारी है। राजस्थान की मतदाता सूची की बात करें तो वहां पिछले चुनाव में शतायु मतदाताओं की संख्या लगभग 25 हजार थी। गुजरात में पिछले चुनाव के दौरान शतायु मतदाताओं की संख्या 10 हजार से अधिक थी। 80 साल की आयु पार करने वाले बुजुर्गों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 24.5 लाख, राजस्थान में 13.17 लाख, मध्यप्रदेश में 6.45 लाख, पंजाब में 5.25 लाख, हरियाणा में 3.5 लाख है। शतायु लोगों की लगभग सभी प्रदेशों में अच्छी खासी संख्या है। यह अकेला आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि भारत ने आजादी के बाद के सालों में कितनी तरक्की की है। जीवन स्तर और जीवन प्रत्याशा कितना ऊपर उठा है। भारत में औसत जीवन प्रत्याशा फिलहाल 70.42 वर्ष है। अमेरिका और चीन में औसत जीवन प्रत्याशा क्रमश: 77.28 और 78.08 है। 1947 में भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 32 वर्ष थी। इसकी वजह थी प्राकृतिक आपदाओं, महामारियों और संक्रामक बीमारियों से लोगों की अकाल मृत्यु। इसके अलावा चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में भी लोग मामूली बीमारियों से जान गंवा देते थे। प्रसव जनित मृत्यु के आंकड़े भी भयावह थे। पिछले 75 सालों में भारत ने इन सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया है और सभी क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल की हैं। इसलिए अगर कोई यह कहता है कि भारत ने पिछले 75 साल में कुछ नहीं किया तो इसे कोरी जुमलेबाजी या फिर राजनीति प्रेरित उक्ति ही कहा जाना चाहिए। बहरहाल, इस शतायु लोगों की चर्चा करने का उद्देश्य यहां भिन्न था। आशय उस लाइफ -स्टाइल, उस जीवन पद्धति की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित करना था जो लोगों को शतायु बनाता है। अधिकांश शतायु गांवों में रहते हैं। वो केवल घर का खाना खाते हैं। कोई सप्लीमेंट नहीं लेते। अपना सारा काम खुद करते हैं।