सीएम भूपेश खोल चुके हैं खजाना तो भाजपा के लिए धर्मांतरण होगा बड़ा मुद्दा
भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। छत्तीसगढ़ की पहाड़ी पट्टियों पर परचम लहराने की कोशिशें लगातार ते•ा होती जा रही है। 2018 के चुनाव में इन पहाड़ों से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। नतीजा यह निकला कि पार्टी को सत्ता से ही बेदखल होना पड़ा। शायद इसीलिए इस बार भाजपा ने इन पहाड़ी पट्टियों पर अपना पूरा जोर लगा दिया है। कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है। सत्तारूढ़ दल ने हाल ही में इन पहाड़ी क्षेत्रों के लिए करीब 1000 करोड़ का खजाना खोला था। भाजपा इन क्षेत्रों में जहां धर्मांतरण को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है, वहीं कांग्रेस अपनी पंचवर्षीय सत्ता के दौरान कराए गए विकास कार्यों को सत्ता की सीढ़ी मानकर चल रही है। शनिवार को जब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी छत्तीसगढ़ पहुंचे तो उनके जेहन में इन्हीं पहाड़ों के मूल निवासी थे। राहुल गांधी ने जहां वनवासी और आदिवासी का अंतर समझाने की कोशिश की तो शाह ने साफ कहा कि आदिवासियों के साथ डांस करने से उनका कल्याण नहीं होने वाला। आने वाले दिनों में आदिवासियों के बीच यह मुद्दा गरमाने के आसार हैं।
राज्य के सरगुजा और बस्तर जैसे पहाड़़ी व आदिवासी क्षेत्रों की कुल 26 सीटें सत्ता तक पहुंचने वाले मखमली कालीन की तरह है। 2018 के चुनाव में सरगुजा की 14 सीटों में भाजपा को कोई नामलेवा भी नहीं मिल पाया। इसी तरह बस्तर की 12 सीटों में से उसके खाते में महज 1 सीट आई थी। यह सीट भी उपचुनाव में कांग्रेस के पाले में चली गई। इन 26 सीटों से पूरी तरह हाथ धोने का खामियाजा भाजपा को सत्ता से बेदखली के रूप में भुगतना पड़ा। इसलिए अब जब भी भाजपा का कोई शीर्षस्थ नेता छत्तीसगढ़ आता है तो वह इन क्षेत्रों का दौरा करने या गुणगान करने से नहीं चूकता। वजह एक बार फिर 14 प्लस 12 सीटें हैं। शनिवार को जब केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ दौरे पर आए तो सरायपाली में जनजाति समाज के अभिनंदन कार्यक्रम में आदिवासी समुदाय के लिए किए गए कार्यों का खूब बखान किया। उन्होंने बताया कि पहले अनुसूचित जनजाति के लिए बजट 24 हजार करोड़ रूपए था, जिसे मोदी सरकार ने बढ़ाकर 1 लाख 19 हजार करोड़ किया। 12 आदिवासी समुदायों को आदिवासी श्रेणी का प्रमाण पत्र देने का विधेयक सदन में पारित कराया गया, जिसके चलते इन आदिवासियों के बच्चे भी उच्च शिक्षा हासिल कर बड़े पदों तक जा सकेंगे। इतना ही नहीं डॉ. रमन सिंह की सरकार ने आदिवासियों के लिए आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32 फीसद किया था।
यह भी एक संयोग था कि जिस दिन शाह का छत्तीसगढ़ आना हुआ, उसी दिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का भी कार्यक्रम तय था। राहुल के केन्द्र में भी आदिवासी ही थे। उन्होंने आरएसएस व भाजपा द्वारा आदिवासियों को वनवासी कहने को अपमानजनक बताया तो वनवासी की जगह मूल निवासी शब्द पर ज्यादा जोर दिया। उनका कहना था कि वनवासी शब्द आदिवासियों को जंगल तक सीमित करता है। राहुल इससे पहले भी इस मुद्दे पर अपने विचार रख चुके हैं। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जब वे मध्यप्रदेश पहुंचे थे तो उन्होंने संघ व भाजपा की आलोचना करते हुए आदिवासियों से माफी तक मांगने की मांग कर दी थी। कर्नाटक और गुजरात चुनाव में भी राहुल इस मुद्दे को उठा चुके हैं। कांग्रेस नेता का कहना था कि आदिवासियों को जल-जंगल व जमीन का अधिकार होना चाहिए।
सत्ता की नदी पर धर्मांतरण की पतवार
छत्तीसगढ़ भाजपा इस बार धर्मांतरण को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है। पार्टी का मानना है कि प्रदेश में पिछले करीब 5 वर्षों में धर्मांतरण का खेल जमकर खेला गया है। इससे आदिवासी समुदाय में गहन नाराजगी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, चुनावी संकल्प पत्र में भी भाजपा इस मुद्दे को प्रमुखता से शामिल करने जा रही है। इससे पहले केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जो 104 पृष्ठ का आरोप पत्र जारी किया, उसमें भी धर्मांतरण के मुद्दे को प्रमुखता से लिया गया है। स्वयं शाह ने आरोप लगाया था कि यहां दलितों और आदिवासियों का खुलेआम धर्मांतरण हो रहा है, लेकिन वोटबैंक के लालच में इसे रोका नहीं जा रहा है। भाजपा को उम्मीद है कि धर्मांतरण का मुद्दा भाजपा को बड़ा चुनावी लाभ दे सकता है। पार्टी को इस बार न केवल सरगुजा अपितु बस्तर से भी काफी उम्मीदें हैं। पिछले दिनों उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेब के बयान का हवाला देते हुए भाजपा मान रही है कि सरगुजा में उसे 8 से 10 सीटें मिल सकती है। गौरतलब है कि सिंहदेव ने पिछले दिनों संभावना जताई थी कि 2018 की तुलना में इस बार सरगुजा में कांग्रेस की सीटें कम हो सकती है। भाजपा नेताओं का मानना है कि पिछली दफा सरगुजा के लोगों ने इस उम्मीद के साथ वोटिंग की थी कि टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बार वह स्थिति नहीं है। वहीं, सरगुजा में कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी भी है। इसका भी भाजपा को लाभ मिलेगा।
विपक्ष में रहते ही क्यों याद आता है धर्मांतरण
धर्मांतरण को मुद्दा बनाए जाने की भाजपाई कोशिशों को कांग्रेस ने आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस का सवाल है कि आखिर भाजपा को विपक्ष में रहते हुए ही धर्मांतरण की याद क्यों आती है? कांग्रेस का दावा है कि राज्य में धर्मांतरण कोई मुद्दा नहीं है। जानकारियों के मुताबिक, कांग्रेस ने भाजपा शासन के 15 सालों के दौरान हुए धर्मांतरण और चर्चों की स्थापना का पूरा डाटा जुटा रखा है। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि उन 15 सालों में जितनी चर्च बनी, उतनी पहले कभी नहीं बनी। उस समय भाजपा के लोग आंखें मूंदे बैठे थे। भारतीय संविधान सभी को धर्म को मानने या और उसके प्रचार-प्रसार का अधिकार देता है। इसी संविधान की वजह से भाजपा अपने शासनकाल में चुपचाप बैठी रही, क्योंकि कहीं कुछ गलत नहीं हो रहा था। कांग्रेस के शासन में भी यही स्थिति है।