नईदिल्ली। देश में बढ़ते चुनावी खर्च को कम करने के इरादे से केन्द्र सरकार एक देश एक चुनाव पर विचार कर रही है। शुक्रवार को सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है। एक देश एक चुनाव की संभावनाओं पर विचार के लिए सरकार ने एक कमेटी बना दी है। इस कमेटी का अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है। जल्द ही इस कमेटी के अन्य सदस्यों की भी घोषणा की जाएगी। सरकार के इस कदम के बाद विपक्ष ने एक बार फिर से विरोध के स्वर तेज कर दिए है।
एक देश एक चुनाव को लेकर केन्द्र सरकार ने वित्तीय खर्च को कम करने का तर्क दिया है। वर्तमान में हर साल देश में कहीं न कहीं चुनाव होते हैं। चुनाव कराने की वित्तीय लागत, बार-बार प्रशासनिक स्थिरता, सुरक्षा बलों की तैनाती में होने वाली परेशानी को देखते हुए एक देश एक चुनाव की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। यदि केन्द्र सरकार इसे लागू करने में सफल होती है तो देश में लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी एक साथ ही होंगे।
आजादी में एक साथ होते थे चुनाव
देश की आजादी के बाद लोकसभा व सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ ही होते थे। साल 1951-52 में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। इसके बाद यह सिलसिला 1957, 1962 और 1967 तक चला। इस दौरान भी लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ हुए। इसबीच 1968 व 1969 में कुछ राज्यों के विधानसभा समय से पहले भंग हुए। इसके बाद 1970 में लोकसभा भी समय से पहले भंग हो गया। इसके कारण चुनावी चक्र टूट गया। अब स्थिति ये हो गई है कि हर साल कहीं ना कहीं चुनाव होते हैं।

‘एक देश एक चुनाव’ एक बड़ा कदम
वर्तमान परिस्थितियों में सरकार फिर से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। अब इस दिशा में कमेटी का गठन एक बड़ा कदम है। सरकार ने इस दिशा में कदम तो बढ़ाया है लेकिन सरकार के लिए भी इस फैसले को लागू करना और इस संबंध में कानून बनाना आसान नहीं होगा। दरअसल एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधानसभाओं के कार्यकाल कटौती हो जाएगी। वहीं कुछ विधानसभा का कार्यकाल बढ़ भी सकता है। ऐसे में विपक्ष इसका पुरजोर विरोध की तैयारी में है।
विपक्ष ने कहा अभी इसकी क्या जरूरत
इधर केन्द्र सरकार ने एक देश एक चुनाव की संभावनाओं पर विचार के लिए कमेटी बनाई और उधर विपक्ष ने विरोध शुरू कर दिया। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने एक सुर में कहा है कि अभी इसकी क्या जरूरत है। देश में वैसे ही कई बड़ी समस्याएं हैं उस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। वहीं जानकारों की माने तो सरकार के इस कदम के बाद यदि एक देश, एक चुनाव लागू हो जाता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान क्षेत्रीय दलों को होगा। दरअसल लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर लड़ा जाता है और विधानसभा चुनाव क्षेत्रीय मुद्दों पर होते हैं। एक साथ चुनाव होने की दिशा में क्षेत्रीय दलों को इससे भाररी नुकसान हो सकता है।