-दीपक रंजन दास
शासन शिक्षा के लगातार गिरते स्तर से परेशान है. प्रयोग पर प्रयोग किये जा रहे हैं और नतीजा यह निकल रहा है कि अब स्कूल-स्कूल में इतना फर्क हो गया है कि शिक्षा के समान अधिकार का उद्देश्य ही हाशिए पर चला गया है। पहले फेल होने पर बच्चे स्कूल से निकाले जाते थे। अब बच्चा फेल होता नहीं बल्कि स्कूल और गुरुजी को फेल कर दिया जाता है। कमजोर बच्चे न केवल बने रहते हैं बल्कि साल दर साल आगे भी बढ़ते रहते हैं। छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो यहां सरकारी क्षेत्र में पांच प्रकार के स्कूल हैं। इनमें सामान्य शासकीय विद्यालय, आत्मानंद इंग्लिश और हिंदी मीडियम उत्कृष्ट विद्यालय, एकलव्य स्कूल, कस्तूरबा गांधी स्कूल, पोटा केबिन स्कूल और अब प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया अर्थात पीएम-स्री। छत्तीसगढ़ में दो साल पहले तक 49023 सरकारी स्कूल थे जिनमें 40 लाख से अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे थे। अब अंग्रेजी और हिन्दी माध्यम मिलाकर स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की कुल संख्या 422 के करीब है। 2011-12 में नक्सल इलाकों में पोर्टाकेबिन स्कूल शुरू किये गये जहां विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ ही भोजन, वस्त्र, पुस्तक-स्टेशनरी एवं आवास की सुविधा मुफ्त दी जाती है। इससे पहले 1997-98 में एकलव्य स्कूलों की स्थापना की गई थी। कस्तूरबा गांधी स्कूल पहले से हैं। इसके अलावा जवाहर नवोदय विद्यालय भी हैं जहां विद्यार्थियों को उनकी मेधा के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। स्कूली शिक्षा में यह भेदभाव कैसा? अब राज्य में 211 पीएमस्री स्कूल खुलने जा रहे हैं। ये स्कूल नई शिक्षा नीति 2020 का पालन करेंगे। इसमें 12 हजार से अधिक बच्चों को पढऩे का मौका मिलेगा। यहां छत्तीसगढ़ बोर्ड का सिलेबस चलेगा। ये सभी ग्रीन स्कूल होंगे अर्थात यहां सोलर पावर, सरकारी बिजली के अलावा जनरेटर की व्यवस्था होगी। इसके अलावा इन स्कूलों में उपवन होंगे, खेती-किसानी का भी अवसर होगा। यहां वेस्ट री-साइकिलिंग की जाएगी। बच्चों को खाद बनाना, बागवानी करना सिखाया जाएगा। देशभर में इस तरह के 14500 स्कूल खोले जाने हैं जिनमें से 9000 इसी साल शुरू हो जाएंगे। दरअसल, जब भी सरकार कुछ अच्छा करती है तो कुछ खराब भी होता है। आजाद भारत ने सबके लिए शिक्षा के समान अवसर विकसित करने पर जोर दिया। शाला त्यागी और अप्रवेशी बच्चों के लिए बाकायदा सर्वे होते रहे हैं ताकि सभी बच्चों को स्कूलों तक लाया जा सके। यह इसलिए भी जरूरी था कि उनके पोषण स्तर, टीकाकरण और सामान्य स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाओं का प्रभावी संचालन किया जा सके। पर जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि केवल सुविधाएं देने से ही वांछित परिणाम नहीं आ जाते। अनुशासन और भाषा ज्ञान अच्छी शिक्षा की पहली जरूरत है। परीक्षा पैटर्न और सबको पास करने वाली बेतुकी नीतियों के चलते ही स्कूलों की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है, इसे जितनी जल्दी शासन समझ जाए, उतना अच्छा रहेगा। केवल इंफ्रास्ट्रक्चर बदलने से ज्यादा फर्क नहीं पडऩे वाला।
Gustakhi Maaf: स्कूली शिक्षा में यह भेदभाव कैसा?
