-दीपक रंजन दास
हालांकि छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों की घोषणा अभी नहीं हुई है पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां ऐक्शन मोड में हैं. भाजपा ने 21 सीटों पर अपने प्रत्याशी फायनल करने के अलावा ई-मेल पर लोगों से चुनाव घोषणा पत्र को लेकर सुझाव मांगना शुरू कर दिया है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा उसे कॉपी कर रही है। कर्नाटक में कांग्रेस ने चुनाव से काफी पहले अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी थी। छत्तीसगढ़ में मतदाताओं से उनके सुझाव लेने की शुरुआत भी कांग्रेस ने की थी। वैसे, इससे भी ज्यादा रोचक घमासान पाटन में मचा हुआ है। यह भूपेश बघेल का निर्वाचन क्षेत्र है। 27 हजार से अधिक वोटों से यह सीट जीतकर वे मुख्यमंत्री बने थे। अब भाजपा ने यहां से मुख्यमंत्री के भतीजे और दुर्ग सांसद विजय बघेल के नाम की घोषणा कर दी है। इससे यह सीट भाजपा जीते या हारे मुख्यमंत्री की लीड जरूर कम हो जाएगी। चाचा-भतीजे की इस लड़ाई पर पूरे प्रदेश की नजर रहेगी। इसलिए इस चुनाव को मजेदार बनाने की पूरी कोशिश हो रही है। कांग्रेस के मुंहफटों ने कहा है कि भाजपा ने सांड के आगे बछरू (बछड़े) को खड़ा कर दिया है। इसका जवाब खुद विजय बघेल ने दिया है। बिलासपुर में मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि वे इस सांड को छांदेंगे (नाक में नथैनी डालेंगे)। इन बे-सिर-पैर की बातों से लोगों का खूब मनोरंजन हो रहा है। इस बहाने लोगों का छत्तीसगढ़ी भाषा ज्ञान तो बढ़ ही रहा है। वैसे यह मुकाबला कांटे का होगा क्योंकि पाटन विजय बघेल का भी निर्वाचन क्षेत्र रहा है। इस सीट पर वे मौजूदा मुख्यमंत्री को 2008 के विधानसभा चुनाव में पटखनी दे चुके हैं। पर आज के हालात कुछ और हैं। अब यह चुनाव भूपेश बनाम विजय नहीं बल्कि मुख्यमंत्री बनाम सांसद है। पिछले चार-साढ़े चार साल में भूपेश ने पाटन का कायाकल्प करने की हर संभव कोशिश की है जिसका असर भी देखा जा रहा है। वैसे भी भूपेश के लिए पाटन से बड़ा सिरदर्द ईडी, आईटी और आम आदमी पार्टी है। एक बेहतरीन चुनाव संचालक होने कारण वो जानते हैं कि एक सीट पर फोकस करने से राज्य भर में नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्हें खूब याद है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में कम से कम 15 सीटें ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर 5 हजार से भी कम मतों का था। 10 हजार या उससे कुछ अधिक अंतर वाली सीटों की संख्या भी लगभग 10 थी। इस तरह 90 में से 25 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां आम आदमी पार्टी ने अगर जोर लगाया तो नुकसान कांग्रेस का हो जाएगा। कांग्रेस के वोट बंट जाएंगे और सीट भाजपा की झोली में चली जाएगी। इसलिए सांड-बछरू जैसी फालतू की बातों में उनकी ज्यादा रुचि नहीं है। फिलहाल वो ‘आप’ की घोषणाओं का आकर्षण कम करने में जुटे हैं।