अंबिकापुर। अंबिकापुर में नसबंदी कराने के बाद विवाहिता के गर्भवती होने एवं पुत्री को जन्म देने के एक मामले में कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को जिम्मेदार ठहराते हुए बड़ा फैसला दिया है। अंबिकापुर लोक अदालत ने प्रभावित परिवार को 23 लाख रुपए देने का आदेश स्वास्थ्य विभाग को दिया है। राशि भुगतान का आदेश बीएमओ वाड्रफनगर एवं सीएमएचओ, अंबिकापुर को दिया गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तीन लाख रुपए तत्काल देने तथा बाकी 20 लाख रुपए अगले 15 वर्षों के लिए एफडी करने का आदेश दिया है।
मिली जानकारी के अनुसार स्थायी लोक अदालत अंबिकापुर के न्यायालय में महिला शांति रवि पति बुधन कुमार लहरे की ओर से परिवाद अधिवक्ता सुशील शुक्ला के माध्यम से पेश किया गया था। परिवाद में नसबंदी के बाद विवाहिता के गर्भवती होने एवं पुत्री के जन्म को स्वास्थ्य सेवा में कमी 50 लाख क्षतिपूर्ति की मांग की गई थी। मामले की सुनवाई करते हुए अंबिकापुर की स्थायी लोक अदालत (जनोपयोगी सेवाएं) की अध्यक्ष उर्मिला गुप्ता ने स्वास्थ्य सेवाओं में कमी मानते हुए इसे स्वास्थ्य सेवाओं में कमी माना। कोर्ट ने महिला को तीन लाख नगद अथवा शेष 20 लाख की राशि एक नवंबर 2038 तक के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के सावधि खाते में जमा करने के आदेश दिए हैं।
जानिए क्या है पूरा मामला
बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर ब्लाक अंतर्गत शारदापुर निवासी शांति रवि पति बुधन कुमार लहरे ने उसके एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के जन्म के बाद नसबंदी के लिए बीएमओ वाड्रफनगर के कार्यालय में पंजीयन कराया था। पंजीयन के बाद परामर्शदाता अमल किशोर पटवा के साथ वह जिला अस्पताल अंबिकापुर पहुंची। यहां 24 दिसंबर 2019 को उसकी नसबंदी की गई और उसे इसका प्रमाण पत्र भी दिया गया। नसबंदी के कुछ माह बाद उसे पता चला कि वह गर्भवती है। जब वह परामर्श के लिए वाड्रफनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक के पास गई तो एबार्सन में प्रसूता को जान का खतरा बताया गया। महिला ने 12 अक्टूबर 2020 को पुत्री को जन्म दिया। नसबंदी असफल होने पर उसे प्रत्येक तीन माह में गर्भ निरोधक टीका लगवाने की सलाह दे दी गई।

इधर सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने अपना पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि नसबंदी सहमति पत्र में स्पष्ट उल्लेखित है कि नसबंदी के दो सप्ताह तक गर्भ निरोधक साधनों का उपयोग करना होगा। महिला को गर्भ निरोधक साधन उपलब्ध कराए गए थे, लेकिन उन्होंने उपयोग नहीं किया। नसबंदी के बाद भी गर्भ ठहरने की स्थिति में दो सप्ताह के भीतर जिम्मेदार शासकीय चिकित्सक को सूचना देने का प्रविधान है, लेकिन इस प्रकरण में ऐसा नहीं किया गया है। जबकि न्यायालय ने कहा कि गर्भ ठहरने के बाद ही महिला ने चिकित्सक से संपर्क किया था, लेकिन एबार्सन में प्रसूता की जान से खतरा बताया गया था। स्वास्थ्य विभाग की दलीलों को खारिज करते हुए न्यायालय ने इसे स्वास्थ्य सेवा में कमी का प्रकरण मानते हुए फैसला सुनाया है।