-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में भाजपा ‘ट्रायल एंड एरर’ फार्मूले पर काम कर रही है। संगठन और विधायक दल का नेता बदलने के लिए भी पार्टी ने इसी फार्मूले पर काम किया था। चुनाव से चार महीने पहले ही भाजपा ने अपने 21 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। अब वह देखेगी कि इन प्रत्याशियों को कैसा रिस्पांस मिलता है, जनता का भी और पार्टी के समर्थकों का भी। साथ ही विधानसभा क्षेत्र पर प्रत्याशी की पकड़ और उसके दावों के मूल्यांकन का भी अवसर उसे मिल जाएगा। यदि कार्यकर्ताओं को यह चेहरा पसंद नहीं आया, पहले से स्थापित नेताओं ने भितरघात की रणनीति बनाई या जनता ने रिजेक्ट कर दिया तो पार्टी के पास इन चेहरों को बदलने के लिए पर्याप्त वक्त होगा। यही नहीं प्रत्याशी घोषित होने वाला व्यक्ति इन चार महीनों में एड़ी-चोटी का जोर लगा देगा जिसका लाभ अंतत: पार्टी को ही मिलेगा। वैसे भी 15 साल सत्ता में रहने के बाद बाहर गई पार्टी के पास प्रदेश में ज्यादा चेहरे नहीं रह गए हैं। विधानसभा के घोषित उम्मीदवार इन चेहरों की संख्या बढ़ाने का काम तो कर ही सकते हैं। प्रत्याशी घोषित किये गये नए चेहरे भी अब वक्तव्य जारी कर सकेंगे, आरोप लगा सकेंगे और बैठक, रैली, आदि कर सकेंगे। देखा जाए तो मौजूदा हालात में यही सही रणनीति है। इसके लिए भाजपा के रणनीतिकारों को बधाई दी जानी चाहिए। कांग्रेस भले ही पार्टी पुरानी हो पर कुछ मामलों में उसका तरीका आज भी उतना ही घिसा-पिटा है जितना 20 या 30 साल पहले था। अंतिम समय में प्रत्याशी की घोषणा करना और फिर ‘बी’ फार्म को लटकाए रखना कांग्रेस की फितरत रही है। इसके चलते भितरघात भी खूब होते रहे हैं। संभावित प्रत्याशी निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में फार्म भरते रहे हैं। बी-फार्म के बाद घमासान मचता था। निर्दलीय रह गए उम्मीदवार अधिकृत प्रत्याशी की पराजय का कारण बन जाते थे। कांग्रेस ने जहां, कभी इस बीमारी को सीरियसली नहीं लिया वहीं भाजपा ने न केवल इसे गंभीरता से लिया बल्कि उसका इलाज भी कर रही है। वैसे, इसका एक कारण और भी है। पिछले चुनाव में संघ परिवार ने चुनाव से पहले चुप्पी साध ली थी। संघ भाजपा की रीढ़ की तरह है। मांसपेशियां कितनी भी मजबूत क्यों न हों यदि रीढ़ अपना काम न करे तो मांसपेशियों को सूखने-सिकुडऩे में ज्यादा वक्त नहीं लगता। इसका नतीजा आदिवासी इलाकों में भाजपा की घोर पराजय के रूप में सामने आया था। कद्दावर नेता जहां राजधानी में बैठकर सत्ता सुख का आनंद लेते हैं वहीं पिछड़े और जंगली इलाकों में संघ की इकाइयां ही मोर्चा संभाले रहती हैं। जनता के बीच चल रहे कई आंदलनों का नेतृत्व संघ के ही हाथों में है। यही वजह है कि भाजपा ने इस बार प्रदेश में संगठन की बागडोर संघ के स्वयंसेवक साव को सौंपी है ताकि कहीं कोई संचार-बाधा न रहे, भाजपा की पीठ पर संघ दिखे।
Gustakhi Maaf: भाजपा का ‘ट्रायल एंड एरर’ फार्मूला




