भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। भाजपा के लिए प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सिरदर्द बन चुके छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घेरने के लिए पार्टी नया व्यूह रचने जा रही है। इसके लिए आंतरिक तौर पर तैयारियां शुरू हो चुकी है। प्रत्याशी को भी तैयार रहने को कह दिया गया है। यदि सब कुछ ऐसा ही रहा तो इस बार पाटन में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। आमतौर पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ विरोधी दल अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी उतारते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस बार हालात जुदा हो सकते हैं। 2018 में भाजपा ने भूपेश बघेल के खिलाफ जातीय व सामाजिक समीकरणों के तहत मोतीलाल साहू को प्रत्याशी बनाया था।
पाटन क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यहां अब तक कुल 4 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से 3 बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में भूपेश बघेल ने जीत हासिल की। एक बार उन्हें पराजय का भी सामना करना पड़ा। पृथक राज्य बनने के बाद 2003 में पहली बार चुनाव हुए थे। पाटन से भूपेश बघेल प्रत्याशी थे। जीत भूपेश की ही हुई। लेकिन 2008 में वे अपनी इस जीत को बरकरार नहीं रख पाए। तब उनके भतीजे विजय बघेल ने बतौर भाजपा प्रत्याशी उन्हें करीब 8000 वोटों से हराकर सनसनी फैला दी थी। इसी के बाद विजय बघेल को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने संसदीय सचिव का दायित्व सौंपा था। लेकिन 2013 और 2018 के चुनाव में फिर से भूपेश बघेल ने कांग्रेस का परचम लहराया। अब खबर यह आ रही है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व पाटन से विजय बघेल को फिर से मैदान में उतार सकता है। विजय बघेल दुर्ग संसदीय सीट से सांसद हैं। हाल ही में भाजपा ने विजय बघेल को चुनाव घोषणा-पत्र समिति का संयोजक बनाकर उनका कद बढ़ाया है। कुछ महीनों पहले तक उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाए जाने की भी चर्चा थी, हालांकि जातीय समीकरणों को देखते हुए यह पद बाद में बिलासपुर के सांसद अरूण साव को दिया गया। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के साथ ही कुर्मी व साहू वोटर्स की बाहुल्यता है।

दो बार आए आमने-सामने
सीएम भूपेश व सांसद विजय बघेल रिश्ते में चाचा-भतीजे हैं। लेकिन दोनों की राजनीतिक परिस्थितियां अलग-अलग हैं। भिलाई-चरोदा नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव विजय बघेल ने निर्दलीय जीता था। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए। 2008 में पार्टी ने उन्हें भूपेश बघेल के खिलाफ विधानसभा का टिकट दिया। इस चुनाव में विजय बघेल ने करीब 8000 मतों से जीत हासिल कर पार्टी नेतृत्व का दिल जीत लिया था। इस जीत के ईनामस्वरूप उन्हें संसदीय सचिव का पद दिया गया। हालांकि 2013 के चुनाव में जब दोनों प्रत्याशी फिर आमने-सामने हुए तो भूपेश बघेल ने जीत हासिल की। राजनीति के मैदान में चाचा-भतीजे को एक दूसरे का कट्टर प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। पिछले संसदीय चुनाव में विजय बघेल को पाटन क्षेत्र से लीड मिली थी। उल्लेखनीय है कि दुर्ग जिले की पाटन सीट छत्तीसगढ़ की चुनिंदा हाई प्रोफाइल सीटों में है। एक बार फिर इस सीट से भूपेश बघेल का चुनाव लडऩा तय बताया जा रहा है।

हाईकमान का संकेत स्पष्ट
पार्टी के जानकारों के मुताबिक, अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि विजय बघेल को पाटन क्षेत्र से ही चुनाव लड़ाया जाएगा। लेकिन यह सौ फीसद सच है कि हाईकमान ने उन्हें तैयार रहने को कह दिया है। दरअसल, राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी बन रही है कि विजय बघेल किसी और क्षेत्र में फिट होते नहीं दिखते। वैसे भी, उनका कर्मक्षेत्र पाटन ही रहा है। हालांकि 2008 में जब विजय बघेल ने भूपेश बघेल के खिलाफ जीत दर्ज की थी, तब की परिस्थितियों और वर्तमान परिस्थितियों में जमीन-आसमान का फर्क है। वर्तमान में भूपेश बघेल सिर्फ विधायक नहीं बल्कि प्रदेश के मुखिया भी है। उनके सामने चुनाव लडऩा विजय बघेल के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है, लेकिन पार्टी सूत्रों का मानना है कि यदि विजय बघेल को लड़ाया जाता है और वे नतीजा हासिल करने में भी कामयाब होते हैं तो उन्हें पार्टी बड़ा पुरस्कार दे सकती है। हाल ही में एक न्यू•ा चैनल ने इस संदर्भ में विजय बघेल से बात भी की थी। सवाल यह पूछा गया था कि क्या वे पाटन से चुनाव लड़ेंगे? इस पर बघेल का कहना था कि यदि पार्टी ऐसा फैसला करती है तो वे फैसले पर अमल करने को तैयार हैं।
कांग्रेस के सबसे मुखर सीएम हैं भूपेश
कांग्रेस आलाकमान का विश्वास हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल केन्द्र सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ काफी आक्रामक रहे हैं। कांग्रेस शासित अन्य मुख्यमंत्रियों की अपेक्षा भूपेश ज्यादा बेहतर तरीके से भाजपा और केन्द्र सरकार को घेरते रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व को भूपेश बघेल फूटी आंख नहीं सुहा रहे। पार्टी को इस बात का भी अंदेशा है कि यदि भूपेश बघेल को घेरा नहीं गया तो वे छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से सरकार बनाने में कामयाब हो सकते हैं। इसलिए उन्हें सबसे पहले उनके अपने क्षेत्र में घेरने की रणनीति बनाई गई है। इधर, यह भी चर्चा चल रही है कि भूपेश बघेल पाटन के अलावा एक अन्य क्षेत्र खैरागढ़ से भी चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि पार्टी के सूत्र इसे वास्तविकता से परे बता रहे हैं।