-दीपक रंजन दास
भिलाई के जयंती स्टेडियम में आयोजित भेंट मुलाकात में मुख्यमंत्री ने फिर अपनी बात ‘कका अभी जिंदा है’ के नारे के साथ की. उन्होंने कहा कि जो सपना आज युवाओं का है, वही हमारा वही हमारे पुरखों का भी था. सीएम ने बताया कि उनकी सरकार ने यूनिवर्सिटी खोली, मेडिकल कॉलेज खोले. भेंट मुलाकात से उठी मांग पर स्वामी आत्मानंद स्कूल और बैंक खोले. राज्य में पहली बार इंग्लिश मीडियम के कॉलेज खोले. साढ़े चार साल में इनकी संख्या 10 हो चुकी है. सरकार आदिवासी परम्पराओं, राम वन गमन पथ, कबीर सरोवर और बाबा घासीदास की महिमा को पुनर्स्थापित करने की कोशिश कर रही है. छात्राओं ने खुद को ज्यादा सुरक्षित बताया. उद्यमिता के क्षेत्र में आगे बढ़ने की भी बातें विद्यार्थियों ने की. किसी ने कहा – छत्तीसगढ़ आपकी मया का दीवाना है तो किसी ने धान खरीदी को लेकर सरकार की तारीफ की. गांव में पीटी टीचर की मांग भी उठी. सीएम ने भिलाई की तारीफ भी की, कहा यहां ऐसे ऐसे खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है जिनका अभी किसी ने नाम भी नहीं सुना. उन्होंने बस्तर, राजनांदगांव और बिलासपुर के स्टेडियमों का भी जिक्र किया. राष्ट्रीय खेलकूद में 13 पदक जीतने और अबूझमाड़ के मल्लखंभ की भी तारीफ की. यह परम्पराओं का देश है. जब कोई बड़ा आपको मिलने बुलाए तो वहां टेढ़ी-मेढ़ी, आड़ी-तिरछी बातें नहीं करनी चाहिए. वहां तो वही बोलना चाहिए जो अगले को अच्छा लगे. उनके समर्थन में नारे लगाने चाहिए. इससे माहौल अच्छा रहता है. जाहिर है कि विद्यार्थियों को ये सवाल उनके गुरुजियों ने रटवाये थे. इसीलिए किसी ने भी महाविद्यालयों के गिरते स्तर, विश्वविद्यालयों की गिरती साख और होनहार विद्यार्थियों के राज्य से पलायन के बारे में कोई सवाल नहीं उठाया. किसी ने भी सड़े-गले पाठ्यक्रमों की बात नहीं की. किसी ने नहीं पूछा कि जब सारी पढ़ाई कोचिंग संस्थानों में ही होनी है तो स्कूल कालेज क्या केवल विद्यार्थियों के रेगुलर स्टूडेंट होने का ठप्पा लगाने के लिए रह गए हैं? डोमशेड के भीतर ऐसी बातों की कोई जरूरत भी नहीं थी. विद्यार्थियों की तरफ से जो कुछ कहना है वह एनएसयूआई कह ही रहा है. इस साल विश्वविद्यालयीन परीक्षाओं के नतीजे हर किसी का दर्द बने हुए हैं. विद्यार्थी तो इसकी चपेट में आए ही हैं, खुद कालेज भी इसकी मार से नहीं बच पाए हैं. फकत एक तिहाई या चौथाई बच्चे ही पास हो सके हैं. ऐसे में द्वितीय वर्ष एवं तृतीव वर्ष की सीटें खाली हो गई हैं. इसकी जिम्मेदारी फिक्स किये जाने की भी जरूरत है. आयोजकों ने इस कार्यक्रम के लिए बेहिसाब विद्यार्थियों को आमंत्रित कर लिया. यह संख्या इतनी ज्यादा थी कि आधे लोगों को ‘कका’ से मिले बिना ही लौटना पड़ा. बारिश के बीच यह बहुतों को अखर गया. इसका खामियाजा भी ‘कका’ को भुगतना पड़ सकता है. “गए थे हरि भजन को, ओंटन लगे कपास” कहीं नाराजगी का कारण न बन जाए.
Gustakhi Maaf: कका अभी जिंदा है’ मगर…
