भिलाई। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़ को कांग्रेस मुक्त भारत के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा मानता है। छत्तीसगढ़ को वह एआईसीसी का एटीएम कार्ड भी कहता रहा है। इस सरकार को किसी भी कीमत पर गिराने के लिए अब तक वह सभी हथकंडे अपना चुका है। तीन-तीन सर्वे के बाद भी पार्टी को ज्यादा से ज्यादा 30 सीटों पर ही जीत की उम्मीद दिखाई दे रही है। राज्य में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। इसलिए उसने वह तरीका छोड़ दिया है जिसके बलबूते उसने केन्द्र में सरकार बनाई थी।
भाजपा के निशाने पर आज भी कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही है। केन्द्र की सत्ता से कांग्रेस कोसों दूर चली गई है. जनता जनार्दन ने भी मान लिया है कि केन्द्र में भाजपा और राज्य में काम करने वाली सरकार होनी चाहिए। केन्द्र से अपने हिस्से का लाभ लेने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ देनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में भी भाजपा ने पहले यही फार्मूला अपनाया था। अपने तरकश के सारे तीर चलाने के बाद उसे अहसास हुआ कि छत्तीसगढ़ में ईडी छापों और आईटी रेडों का कोई खास असर जनता की मानसिकता पर नहीं पड़ा है। अवाम अभी भी कमोबेश भूपेश सरकार में आस्था रखती है। वह कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में हुए सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तनों को लेकर खुश है।
संतुष्टि का बड़ा कारण यह भी है कि भूपेश सरकार के कामकाज की सराहना स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार कर चुके हैं। भूपेश सरकार की योजनाओं को देखने-समझने कई राज्यों की टीमें आ चुकी हैं। इसलिए अब भाजपा ने फोकस बदला है. इसलिए अब वह कांग्रेस उन विधायकों को निपटाने की कोशिश करेगी जो जनता की नजरों में निकम्मे हैं। जिनसे कोई कामकाज तो होता नहीं ऊपर से व्यर्थ में उनकी फूं-फां झेलनी पड़ती है। लोकतंत्र का यही तकाजा है कि गैर जिम्मेदार और अयोग्य नेताओं को किनारे किया जाए। वैसे, कांग्रेस खुद अपनी अनिष्पादित संपत्तियों से मुक्त होना चाहती है।

एक सूची वह भी बना रही है ऐसे विधायकों की जिनका न तो पार्टी को कोई फायदा मिला और न ही जनता को। राजनीति में आए इस परिवर्तन का स्वागत होना चाहिए। वैसे भी आधुनिक दौर नई सोच का है। यह “नॉलेज ड्रिवन वर्ल्ड है। अर्थात ज्ञान ही सर्वोपरि है. व्यापार वाणिज्य से लेकर शिक्षा तक के क्षेत्र में भी चर्चा केवल नवोन्मेष की हो रही है। भूपेश बघेल इन सभी कसौटियों पर खरा उतरते हैं. योजनाओं का क्रियान्वयन होने में, उसके नतीजे आने में वक्त लग सकता है, बल्कि लगता ही है। इसलिए भाजपा अब भूपेश सरकार की योजनाओं की बजाय ठल्ले विधायकों की जड़ें खोदेगी। स्थानीय लोगों में पार्टी लाइन से ऊपर उठकर भाईचारा होता है। इसलिए अब गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दीगर राज्यों के 90 विधायक छत्तीसगढ़ की विधानसभा सीटों की कमान संभालेंगे। काश! भाजपा ने अपनी पार्टी का ऐसा पोस्टमार्टम 5-10 साल पहले कर लिया होता।




