भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। सत्ता और संगठन में बेहतर आपसी सामंजस्य के बीच एक चौंकाने वाली खबर आई है। बताया गया है कि कांग्रेस के जो विधायक जीत हासिल करने की स्थिति में नहीं है, उन्हें स्पष्ट तौर पर बता दिया गया है। लेकिन क्षेत्र में अपनी खराब स्थिति के बाद भी ये विधायक टिकट चाहते हैं। इसके पीछे कई तरह के समीकरणों का हवाला दिया जा रहा है और अपनी जीत की पूरी संभावना भी जताई जा रही है। पार्टी ने स्थानीय स्तर पर हासिल रिपोर्ट और सर्वे की रिपोर्टों के आधार पर विधायकों को क्षेत्र में सक्रिय रहने और अपनी खराब स्थिति को सुधारने की नसीहत काफी पहले ही दे दी थी। उसी समय से यह भी चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस इस बार परंपरा के विपरीत जाकर विधायकों के भी टिकट काट सकती है। ऐसे विधायकों की संख्या दो दर्जन से भी ज्यादा बताई जा रही है।
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष बदला तो कई तरह के कयासों को बल मिला, किन्तु मोहन मरकाम के कार्यकाल में ही पार्टी ने सभी 90 सीटों के लिए तैयारियां शुरू कर दी थी। तब सत्ता और संगठन में अच्छा तालमेल था। बतौर प्रदेश अध्यक्ष मरकाम ने काफी पहले ही संकेत दे दिया था कि पार्टी की चुनावी तैयारियां सत्ता में आने के बाद से ही शुरू हो गई थी। यानी, आंतरिक तौर पर कांग्रेस सत्ता संभालने के तत्काल बाद से ही अगले चुनाव पर गम्भीर हो गई थी। भूपेश सरकार के लिए सबसे बड़ी दिक्कत कोरोना की महामारी ने पेश की। इसके चलते पूरे 2 वर्ष तक सरकार का काम पूरी तरह ठप्प पड़ा रहा। लेकिन कोरोना की विभीषिका मंद पड़ते ही सरकार भी तत्काल सक्रिय हो गई और मिशन 2023 को अपने पक्ष में करने जुट गई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जनता से जुड़ी उन योजनाओं को साकार करने की पहल की, जिससे जनमानस को कांग्रेस के पक्ष में किया जा सके। खासतौर पर गांव, गरीब, किसान से लेकर युवाओं तक पर फोकस किया गया। मिशन मोड में आने के साथ ही उन क्षेत्रों की ओर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया, जहां से मोटे तौर पर वोट कबाड़े जा सकते थे। इसके अलावा जातीय व सामाजिक समीकरणों पर भी फोकस किया गया। यह सब कुछ बहुत सुनियोजित तरीके से और बड़े आराम से चलता रहा। विपक्ष पहले से ही कमजोर था। उसे कांग्रेस के सत्ता और संगठन के निहित उद्देश्यों की भनक तक नहीं लग पाई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बेहतर राजनीतिक सूझ-बूझ के साथ छत्तीसगढ़ के हालातों को अपने पक्ष में कर लिया। नीतियां ऐसी बताई गई कि भाजपा के पास मुद्दों का अभाव रहा। सीएम भूपेश के कार्यकाल में भाजपा अब तक सिर्फ कसमसाती रही है। उसके पास चाहकर भी करने को कुछ नहीं है। इसीलिए परंपरागत रूप से भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया जा रहा है।
23-24 की तैयारी एक साथ
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह चुनावी राज्यों के लगातार दौरे कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में ही वे एक महीने में तीन बार आ चुके हैं। दो बार तो यहां रूककर सीनियर नेताओं से राय-मशविरा भी कर चुके हैं। शाह की सक्रियता संकेत है कि भाजपा के लिए यहां राह उतनी आसान नहीं है, जितनी कि भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद से ही मिशन-2023 के साथ ही 2024 की भी तैयारियां शुरू कर दी थी। संगठन के जानकारों की मानें तो पार्टी ने सभी 90 सीटों पर अपना होमवर्क पूरा कर लिया है। खराब स्थिति वाले विधायकों की खबर हाईकमान तक पहुंचाई जा चुकी है। हाईकमान ने फिलहाल इन विधायकों का फैसला पेंडिंग रखा हुआ है, लेकिन बताया जा रहा है कि टिकट वितरण के दौरान इसका विशेष तौर पर ख्याल रखा जाएगा कि बहुत खराब स्थिति वालों को टिकट देकर सत्ता का गणित न गड़बड़ाए। जानकारों की मानें तो कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि वह पूर्ण बहुमत के साथ एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है। हालांकि इसके लिए पार्टी को कुछ कटु फैसले भी लेने पड़ सकते हैं।

नाराजगी से बचने की भी जुगत
पार्टी को इस बात का भी अंदेशा है कि विधायकों के टिकट काटने से समर्थकों में नाराजगी फैल सकती है। इसके भीतरघात और खुलाघात जैसे नतीजे आ सकते हैं या कार्यकर्ता चुपचाप घर बैठ सकते हैं। इन सबके चलते नुकसान पार्टी का ही होगा। शायद यही वजह है कि कुछ महीनों पहले ही विधायकों को सचेत कर दिया गया था कि क्षेत्र में उनकी स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय होने को भी कहा गया था। बताते हैं कि सत्ता और संगठन से मिले दिशा-निर्देशों के बाद कई विधायकों ने अपनी स्थिति को सुधारा है, लेकिन अब भी काफी विधायक ऐसे हैं, जिनकी छवि यथावत् है। ऐसे विधायकों का टिकट कटेगा या नहीं, यह तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता, किन्तु बताते हैं कि अपनी खराब स्थिति के बाद भी विधायकों ने अपने रिस्क पर टिकट देने की वकालत की है। इसके पीछे, सामाजिक, जातीय समेत कई तरह के समीकरणों का हवाला दिया जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि इनमें कुछ ऐसे विधायक भी शामिल हैं, जो लगातार सक्रिय तो हैं, किन्तु चुनाव जीतने की संभावनाएं कम है।
ज्यादातर विधायक मैदानी इलाकों के
जिन विधायकों की स्थिति नाजुक बताई जा रही है, उनमें से ज्यादातर (या लगभग सभी) मैदानी इलाकों के बताए जा रहे हैं। इसका आशय यह भी है कि पार्टी बस्तर और सरगुजा जैसे पहाड़ी क्षेत्रों के विधायकों को रिपीट कर सकती है। इन पहाड़ी इलाकों से 2018 में भाजपा का सूपड़ा पूरी तरह साफ हो गया था। चुनावी रिपोर्टों में सरगुजा में पार्टी को कुछ नुकसान का अंदेशा जताया गया था, किन्तु अब हालात पूरी तरह दुरूस्त है। टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाकर और भाजपा के सीनियर नेता नंदकुमार साय को कांग्रेस में लाकर और सम्मान स्वरूप उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा देकर स्थितियों को संभाला गया है। बस्तर से सांसद दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्ष मोहन मरकाम को केबिनेट मंत्री बनाकर वहां भी संतुलन बरकरार रखा गया है। इससे बस्तर में कांग्रेस के हालात और मजबूत हुए हैं। जानकारों के मुताबिक, न केवल विधायक, अपितु 2-3 प्रभावशाली मंत्रियों की रिपोर्ट भी विपरीत आई है। इनमें दुर्ग संभाग से निर्वाचित दो मंत्रियों के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। इनके क्षेत्र बदलने की भी चर्चा है।