भिलाई। यूं तो चुनाव लडऩे वाला प्रत्येक व्यक्ति यही अपेक्षा रखता है कि वह जीत रहा है। यह तो नतीजे ही बताते हैं कि लडऩे वाले को क्या मिला? लेकिन दुर्ग जिले में एक ऐसी भी सीट है, जहां से चुनाव लडऩे को हर कोई सिर्फ इसलिए लालायित है, क्योंकि उन्हें लगता है कि टिकट मिलते ही जीत पक्की है। जिले की वैशाली नगर सीट को भाजपा मानसिकता वाला क्षेत्र माना जाता है। यहां अब तक हुए कुल 4 चुनाव के नतीजे भी इसकी गवाही देते हैं। 2018 के बाद छत्तीसगढ़ की राजनैतिक आबोहवा बदली है और इसका प्रभाव भी वैशाली नगर में देखने को मिल रहा है। बावजूद इसके हर भाजपाई को यही लगता है कि बस टिकट मिलना ही काफी है, जीत तो पहले से ही तय है। बता दें कि यहां से कई बड़े नामों के साथ ही वार्ड स्तर के लोग भी स्वयं को टिकट का दावेदार बता रहे हैं। ऐसे लोग भी सक्रिय हैं, जिन्होंने कभी पार्षद पद का भी चुनाव नहीं लड़ा।
वैशाली नगर विधानसभा का मैदान फिलहाल पूरी तरह साफ है। यहां के विधायक विद्यारतन भसीन के दिवंगत होने और चुनाव के कम वक्त बचने की वजह से फिलहाल यह सीट खाली है। परिसीमन के बाद 2008 में पहली बार हुए चुनाव में क्षेत्र के नागरिकों ने भाजपा पर भरोसा जताते हुए सरोज पाण्डेय को 21,267 मतों से जीत दिलाई थी। हालांकि अगले ही साल 2009 में यहां उपचुनाव की नौबत इसलिए आ गई क्योंकि सरोज ने लोकसभा चुनाव जीतकर, विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। सरोज पाण्डेय के इस फैसले की नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई, जिसके चलते उपचुनाव में कांग्रेस के भजनसिंह निरंकारी ने करीब 1200 मतों से विजय हासिल की। 2013 में यहां से भाजपा ने पहली बार विद्यारतन भसीन को उतारा तो कांग्रेस ने अपने विधायक भजनसिंह निरंकारी को। इस चुनाव में भसीन ने 24,448 मतों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। 2018 में भी भसीन, कांग्रेस प्रत्याशी से 18,080 मतों के अंतर से जीते। इस तरह उपचुनाव समेत कुल 4 चुनावों में से 3 बार भाजपा को जीत हासिल हुई।
महिलाओं में हो सकती है टक्कर
वैसे तो वैशालीनगर में टिकट के दावेदारों की कमी नहीं है, लेकिन दोनों पार्टियों की ओर से मिल रहे संकेत बताते हैं कि वैशाली नगर में इस बार महिलाओं की जंग होने के आसार ज्यादा है। वैसे भी, यहां हुए पहले विधानसभा चुनाव में एक महिला ने ही जीत का परचम लहराया था। इस बार भी दोनों ही पार्टी की महिला दावेदारों को मतदाताओं से ऐसी ही अपेक्षा है। टिकट मिलना, न मिलना पार्टी के निर्णय पर निर्भर है, किन्तु महिला दावेदारों ने अपने-अपने स्तर पर तैयारियां काफी पहले से ही शुरू कर दी थी। कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में दावेदारों की भरमार है। हालांकि कांग्रेस से टिकट के दावेदारों की कतार भी कम नहीं है। कई दीगर क्षेत्रों के दावेदार भी यहां से दावेदारी के मूड़ में हैं। कई तो बोरिया-बिस्तर लेकर किराए के मकान में भी शिफ्ट हो चुके हैं, ताकि उन पर बाहरी टैग न लगे।

कांग्रेस में इन पर नजर
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए कांग्रेस के टिकट दावेदारों को भी इस सीट में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगी है। महिला दावेदारों की बात करें तो कुछ नाम चर्चा में हैं। इनमें तुलसी साहू, नीता लोधी व एक महिला पार्षद के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। तुलसी साहू भिलाई जिला कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकीं हैं। एक समय वे सीएम भूपेश बघेल के सबसे करीबी लोगों में थीं। विगत 2018 के चुनाव में उन्हें टिकट मिलते-मिलते रह गई थी। इसके बाद राज्यसभा की सीट के लिए भी उनका नाम चला था। तब तुलसी साहू धार्मिक यात्रा पर थीं, जिसे छोड़कर आनन-फानन में रायपुर पहुंचीं थीं। उनके अलावा नीता लोधी भिलाई की पहली महापौर रह चुकीं हैं। वर्तमान में अंत्यावसायी, सहकारी व वित्त विकास निगम में उपाध्यक्ष और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त है। संगठन में भी उनके काम की सराहना हुई थी। इनके अलावा एक महिला पार्षद का नाम भी लिया जा रहा है, जो काफी समय से सक्रिय हैं।
भाजपा से भी आए कई नाम
इधर, भाजपा की ओर से यह बातें सामने आ रही है कि वैशाली नगर से महिला प्रत्याशी उतारने पर जीत की संभावना बढ़ जाएगी। इसी के मद्देनजर यहां भी कई महिला दावेदार चंदन तिलक लगाकर तैयारियों में जुट गई हैं। वैसे तो कई नाम सामने आ रहे हैं, लेकिन संगीता शाह और पूर्व महापौर निर्मला यादव के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। कई लोग निर्मला यादव के नाम पर आश्चर्य जाहिर कर रहे हैं, लेकिन यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि श्रीमती यादव 2018 में ऐन चुनाव के वक्त कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गईं थीं। उसके बाद से पार्टी उनके अनुभवों का सही उपयोग नहीं कर पाई है। वहीं संगीता शाह के सीधे सम्पर्क दिल्ली से बताए जा रहे हैं। चर्चा तो यहां तक कि संगीता को आलाकमान से हरी झंडी भी मिल चुकी है। हालांकि अब तक स्पष्ट कुछ भी नहीं है।
पुरूष दावेदारों की संख्या बेहिसाब
इधर, दोनों ही दलों में पुरूष दावेदारों की संख्या भी कम नहीं है। इस मामले में एक अनार-सौ बीमार वाले हालात हैं। कई लोग स्वयं को सीएम का खास बताकर अपनी टिकट पक्की बता रहे हैं तो कई तो लगता है कि संगठन में काम करने का उन्हें ईनाम जरूर मिलेगा। पार्षद चुनाव लड़ चुके कई नेता भी टिकट के जुगाड़ में हैं।