-दीपक रंजन दास
“झोला-छाप” एक फूहड़ टिप्पणी है उन लोगों के लिए जो पारम्परिक ज्ञान को अब तक सहेजे हुए हैं. यह न केवल अपमानजनक है बल्कि यह हमारी उस दोहरी मानसिकता को भी दर्शाता है जिसके तहत हम पुरातन संस्कृति की बातें तो करते हैं पर उसके ज्ञान का सम्मान नहीं कर पाते. यह हमारे लिए केवल आस्था का विषय है. जब हम रामायण की बात करते हैं तो केवल राम, सीता, रावण में ही उलझे रह जाते हैं. इसी ग्रंथ में चिकित्साशास्त्र का भी एक गूढ़ ज्ञान छिपा हुआ है. जब लक्ष्मण युद्धभूमि में मूर्च्छित हो जाते हैं तो वैद्यराज सुषेण उनका उपचार करने आते हैं. वैद्यराज सुषेण लंकाधिपति रावण के निजि चिकित्सक थे. आज रेडक्रास भी यही करता है. वह दोनों ही पक्षों के घायलों को चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराता है. कह सकते हैं कि रेडक्रॉस जैसी संस्था की नींव में भी भारतीय परम्पराओं का योगदान है. इसी प्रसंग में यह बात भी आती है कि सुषेण संजीवनी बूटी से प्राण रक्षा की बात करते हैं. महाबली हनुमान संजीवनी लेने के लिए हिमालय तक की यात्रा वायुमार्ग से करते हैं. बूटी पहचान में नहीं आने पर वे पूरा पहाड़ ही उखाड़ कर ले आते हैं. आज पहाड़ उखाड़ कर वायुमार्ग से लाना तो संभव नहीं है पर वैद्यों के पारम्परिक ज्ञान पर शोध कर उसे स्थापित किया जा सकता है. इस विधा में औपचारिक शिक्षा दी जा सकती है और सस्ती सुगम चिकित्सा प्रणाली विकसित की जा सकती है. “कोरोना काल” इसका श्रेष्ठ उदाहरण है. जब लाखों खर्च करके भी लोग अस्पतालों में स्वस्थ नहीं हो पा रहे थे तब सरकार को भी ‘काढ़ा’ की बात करनी पड़ी. दरअसल, पाश्चात्य ज्ञान हमारे दिलो-दिमाग पर इस तरह हावी हो चुका है कि हम अपने पारम्परिक ज्ञान को उसी तरह निकाल फेंक रहे हैं जिस तरह दिवाली सफाई में लोग पुरानी किताबों को कबाड़ में बेच देते हैं. छत्तीसगढ़ में सिरहा, गुनिया, गायता, मांझी, मुखिया, वैद्यराज, बजनिया आदि के पास अपने पुरखों से हासिल ज्ञान है. वैद्यराज नाड़ी देखकर जड़ी बूटियों से इलाज करते हैं तो गुनिया लोगों की परेशानियों का हल निकालने की कोशिश करते हैं. गायता गांव के देवी-देवता, पेन पुरखा की पूजा अर्चना कर उन्हें तुष्ट करते हैं. मांझी प्रमुख सियान का कर्तव्य निभाता है. छत्तीसगढ़ ने जिस तरह नरवा-गरुवा-घुरवा-बाड़ी की प्राचीन जीवनपद्धति की तरफ कदम बढ़ाया है उसी तरह पारम्परिक चिकित्सा ज्ञान को सीधे खारिज करने की बजाय उसे भी आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. उसे आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के साथ जोड़ा जा रहा है. अब अस्पतालों के चिकित्सक सिरहा, गुनिया, बैगा को बुलाकर उनका सम्मान कर रहे हैं. उन्हें विभिन्न बीमारियों के लक्षणों की जानकारी देकर चिन्हित मरीजों को तत्काल अस्पताल भेजने में उनका सहयोग मांग रहे हैं. यह कोशिश कुछ जगहों पर रंग लाने लगी है. निश्चित तौर पर प्राचीन और आधुनिक ज्ञान का यह संगम बेहतर नतीजे देगा.
Gustakhi Maaf: पारम्परिक ज्ञान को लेकर आगे बढ़ता छत्तीसगढ़
