रायपुर। छत्तीसगढ़ में भाजपा लम्बे समय से आदिवासी वोट कबाडऩे में जुटी है, लेकिन उसके इस गहन और लम्बे राजनीतिक प्रयासों पर मध्यप्रदेश के सीधी में घटित पेशाब कांड की काली छाया पड़ती दिख रही है। भाजपा के शीर्षस्थ व प्रादेशिक नेता लगातार आदिवासी वोटों को पार्टी से जोडऩे की कवायद कर रहे हैं। बस्तर और सरगुजा जैसे पहाड़ी इलाकों में उनके दौरे भी होते रहे हैं। लेकिन सीधी-कांड ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। इसका 21 फीसदी आदिवासी आबादी वाले एमपी में कितना असर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, किन्तु छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में भी इस कांड को लेकर नाराजगी फैलने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के सीधी क्षेत्र में वहां के एक युवा भाजपा नेता ने एक अधेड़ आदिवासी के ऊपर पेशाब कर दी थी। इसका वीडियो वायरल होने के बाद हालांकि सरकार की पहल पर आरोपी युवक पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाया गया और पुलिसिया कार्यवाही भी की गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीडि़त आदिवासी के पैर धोकर माफी भी मांग र्ली, किन्तु इससे आदिवासी वर्ग की नाराजगी कम होगी, इसकी संभावना कम ही है। दरअसल, मामला इसलिए भी ज्यादा गम्भीर हो गया है क्योंकि पीडि़त व्यक्ति आदिवासी वर्ग से जुड़ा हुआ है और केन्द्र की मोदी सरकार जो यूसीसी कानून लाने की तैयारी में है, उसे लेकर आदिवासियों ने खासी नाराजगी पहले ही जाहिर कर दी है। केन्द्र सरकार आदिवासियों को इस कानून में छूट देने का प्रावधान लाने की मानसिकता भी बना रही है। ऐसे में पहले से ही भाजपा से नाराज चल रहे आदिवासियों के बीच सीधी कांड आग में घी का काम कर सकता है।
हालांकि अभी तक छत्तीसगढ़ में आदिवासी वर्ग की ओर से विरोध के स्वर मुखरित नहीं हुए हैं, लेकिन प्रादेशिक भाजपा के पास इस मामले में चुप्पी साधे रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस सोशल मीडिया के माध्यम से सीधी कांड का वीडिय़ो और उससे जुड़े तमाम मसलों को जोर-शोर से उठा रही है।

क्यों नहीं लगाया एससी-एसटी एक्ट?
मध्यप्रदेश की सरकार ने आरोपी भाजपा नेता के खिलाफ एनएसए के तहत कार्रवाई की है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर एससी-एसटी एक्ट के रहते हुए एनएसए क्यों लगाया गया? वास्तव में इसके पीछे की सरकार की मंशा पर भी उंगलियां उठ रही है। यदि आरोपी युवक के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई होती तो इसका सीधा और स्पष्ट मतलब होता कि सरकार मानती है कि आदिवासी का शोषण हुआ है। ऐन चुनाव से पहले शिवराज सरकार ऐसा जोखिम इसलिए भी नहीं लेना चाहती, क्योंकि आदिवासी समुदाय बड़ा वोट-बैंक है। इसलिए एनएसए लगाकर काम खत्म किया गया।