-दीपक रंजन दास
व्यावसायिक परीक्षा मंडल द्वारा आयोजित परीक्षाओं में बड़ी संख्या में परीक्षार्थी केन्द्रों तक नहीं पहुंचे। नौकरी के लिए आयोजित परीक्षाओं में रिकार्ड अनुपस्थिति के लिए मुफ्त आवेदन को जिम्मेदार माना जा रहा है। शासकीय औद्योगिकी प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए प्रशिक्षण अधिकारी की भर्ती के लिए छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल परीक्षाएं ले रहा है। इन परीक्षाओं में 13 प्रतिशत, 15 प्रतिशत अभ्यर्थी परीक्षा के लिए पहुंच रहे हैं। 17 जून को हुई सहायक पशु क्षेत्राधिकारी भर्ती परीक्षा में 74 प्रतिशत अभ्यर्थी अनुपस्थित रहे। व्यापमं का कहना है कि परीक्षा केंद्र बनाने में उसे काफी खर्च करना पड़ता है। केंद्र व्यवस्थापक को एक हजार रुपये, शिक्षकों को पांच सौ रुपये देने पड़ते हैं। चपरासी को भी मानदेय दिया जाता है। इसके अलावा स्टेशनरी, प्रश्नपत्र और उत्तरपुस्तिकाओं की छपाई तथा परिवहन पर भी खर्च होता है। एक केंद्र बनाने में कम से कम आठ से 10 हजार रुपये का खर्च आता है। पर यही स्थिति प्री-बीएड और प्री-डीएलएड परीक्षाओं की भी रही। दरअसल, बात सिर्फ मुफ्त आवेदन की नहीं है। जून का महीना चल रहा है। तापमान आसमान छू रहा है। जिन बियाबानों में परीक्षा केन्द्र बनाए गए हैं वहां ठहरने के लिए छांव तो दूर, पीने के लिए पानी तक का इंतजाम नहीं है। जो भी इंतजामात हैं वो परीक्षा केन्द्र के भीतर हैं। अधिकांश केन्द्रों तक आवागमन के साधन तक नहीं हैं। इसलिए पेरेन्ट्स को बच्चों के साथ वहां जाना पड़ रहा है। अभी कुछ दिन पहले बीएड और डीएलएड के लिए प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन किया गया। अकेले बिलासपुर में बीएड के 7,704, डीएलएड के 6,733 प्रवेशार्थी अनुपस्थित रहे। बालोद में आयोजित इन्हीं परीक्षाओं में 4,657 में से 1134 अनुपस्थित रहे। पशु पक्षी और जानवर तक जिस गर्मी से बचने के लिए अपनी सारी गतिविधियों को रोक लेते हैं, वहां इंसान अकेला ऐसा होशियार प्राणी है जो अपनी जिजीविषा को साबित करने के लिए निकल पड़ता है। इधर, अखबारों में कभी गर्मी से मृत पशुओं की तो कभी पक्षियों की खबरें छप रही हैं। 80-90 के दशक तक ये महीने छुट्टियों के होते थे। स्कूल कालेज की परीक्षाएं खत्म हो जाती थीं। रिजल्ट आने तक छुट्टियां लग जाती थीं। बावजूद इसके शिक्षण की गुणवत्ता आज से बेहतर थी। आज जो भी वरिष्ठ शिक्षक, व्याख्याता और प्राध्यापक स्कूल कालेज में बचे हुए हैं, वो सब इसी दौर में पढ़ाई करके निकले हैं। पर सरकार की जिद है बारहों महीने पढ़ाई होनी चाहिए। परीक्षाएं ऐसे मौसम में होनी चाहिए जब अस्पताल लोगों को बिना जरूरी काम के बाहर नहीं निकलने की सलाह दे रहे हों। अगर यह जरूरी भी है तो रेवड़ी की तरह परीक्षा केन्द्र बांटने से पहले सरकार इसे भी सुनिश्चित कर ले कि वहां एक्जाम हॉल के बाहर भी छांव और पानी का इंतजाम हो। वरना किसी दिन लू से 10-20 लोगों के मरने की खबर आ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे।