-दीपक रंजन दास
अब तक तो यही सुना जाता था कि शराब पीकर लोग आपस में लड़ते हैं। घर-परिवार बर्बाद हो जाता है। दोस्त ही दुश्मन बन जाता है। नशे में लोग व्यभिचारी हो जाते हैं, बलात्कार करते हैं, हत्या तक कर देते हैं। मां, बहन, बेटी का फर्क मिट जाता है। पर अब ऐसा लगने लगा है कि “शराब” नाम में ही कोई लोचा है। नाम लेते ही झगड़ा शुरू हो जाता है। जिन शहरों में शराब जब्त होती है वहां की पुलिस भ्रष्ट हो जाती है। नेता और पत्रकार भी मुफ्त की दारू में गोते लगाने लगते हैं। पुलिस थानों से भी नेता और पत्रकारों को त्यौहारी दारू बांटी जाती रही है। इससे तो शराबी ही अच्छे हैं। पीने से पहले और नशा होने के बाद का भाईचारा देखते ही बनता है। पैसे कम होते हैं तो लोग अपना पैसा हाथ में लेकर दारू भट्टी के बाहर खड़े रहते हैं। दूसरे को इशारा काफी होता है। वह भी अपना पैसा लेकर आ जाता है। दोनों भाई पैसा मिलाकर साथ-साथ दारू पीते हैं। पैसा कम होता है तो पीने की लिमिट भी खुद-ब-खुद तय हो जाती है। पीने के बाद भलमनसाहत और बढ़ जाती है। कुछ लोग नशे में बेहतर कवि, लेखक या गायक हो जाते हैं। कुछ अभिनेता दो घूंट लगाकर बढिय़ा एक्टिंग करते हैं। पीने वालों के लिए एक अलग संज्ञा भी है – शराबी। चाय, छाछ या जूस पीने वालों के लिए ऐसा कोई शब्द नहीं है। इसी शराब को लेकर अब छत्तीसगढ़ में सिर-फुटौव्वल की नौबत आई हुई है। 15 साल के शासन के बाद अपनी भद्द पिटा चुकी भाजपा हमलावर हो रही है। समझ में यह नहीं आ रहा कि उसे आपत्ति किस बात को लेकर है? शराब के राजस्व को लेकर या शराब की ज्यादा बिक्री को लेकर। वह कह रही है कि ईडी छापों के बाद शराब का राजस्व बढ़ गया। इसका मतलब भी वह निकालकर दे रही है। कह रही है कि शराब का पैसा पहले कांग्रेस के नेताओं के पास जा रहा था। आरोप है कि यह घोटाला 2000 करोड़ रुपए का है। अस्तित्व संकट का सामना कर रही जोगी कांग्रेस भी भाजपा का समर्थन कर रही है। इन पार्टियों ने मान कैसे लिया कि गोबर-गोमूत्र से पैसा कमाकर दिखाने वाली कांग्रेस की सरकार शराब को छुट्टा छोड़ देगी? चुनाव तो सभी को लडऩा है। चुनावों पर अरबों रुपए खर्च होने हैं। भाजपा को तो केन्द्र से फंड मिल जाएगा। कांग्रेस के लिए तो छत्तीसगढ़ ही केन्द्र है। हाल ही में चुनाव आयोग ने लोकसभा उम्मीदवारों के लिए चुनाव खर्च की सीमा को बढ़ाकर 95 लाख तक कर दिया है। इसी तरह विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार 40 लाख रुपए तक खर्च कर पाएगा। यह एक नंबर में है। वास्तविक खर्च करोड़ों में होता है। यह पैसा आता कहां से है, आएगा कहां से, भाजपा को यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए।
Gustakhi Maaf: और कुछ नहीं मिला तो दारू पर बवाल
