-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ का कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय इन दिनों चंद मतलबियों का अखाड़ा बना हुआ है। इसके चलते विश्वविद्यालय की खूब फजीहत हो रही है पर किसी को कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं देता। पहले तो यहां के कुलपति निशाने पर रहे। पूछा गया कि सिर्फ स्नातक की डिग्री लेकर कोई व्यक्ति कैसे किसी विश्वविद्यालय का कुलपति बन सकता है। समय के साथ इस बेतुके सवाल पर खाक पड़ गई। जब स्नातक महिला देश की राष्ट्रपति बन सकती है तो स्नातक पुरुष विश्वविद्यालय का कुलपति क्यों नहीं हो सकता। वैसे भी कुलपति एक पोशाकी पद है। विश्वविद्यालय का सबसे बड़ा अधिकारी कुलसचिव होता है जिसकी नियुक्ति की बाकायदा एक प्रक्रिया होती है। कुलपतियों के ऊपर कुलाधिपति होता है। राज्यपाल पदेन कुलाधिपति होते हैं। राज्यपालों के लिए भी शिक्षा का कोई मापदण्ड नहीं है। राष्ट्रपति पदेन कुलाध्यक्ष होता है। उसे विश्वविद्यालयों के निरीक्षण और पूछताछ का अधिकार होता है। राष्ट्रपति के लिए भी कोई शैक्षणिक योग्यता तय नहीं है। ज्ञानी जैल सिंह की औपचारिक शिक्षा मामूली थी। बहरहाल, कुलपति की शिक्षा का मामला ठंडा पड़ चुका है। कुलपति की योग्यता का मामला उठाने वाला असोसिएट प्रोफेसर अब खुद निशाने पर है। आरोप हैं कि उसने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर यह पद हासिल किया। इस मामले में राजधानी क्षेत्र के सेजबहार थाने में 420 का मुकदमा दायर किया गया है। यह मामला आरोपी के सहकर्मी एक दूसरे असोसिएट प्रफेसर ने दर्ज कराया है। उसपर भी एक छात्रा से छेड़छाड़ करने का मामला चल रहा है। फिलहाल वो जमानत पर है। दरअसल, किसी भी संस्था की साख वहां काम करने वाले लोगों की व्यक्तिगत छवि से भी जुड़ी होती है। सह-प्राध्यापक एक जिम्मेदार पदवी है। अपने तमाम अनुभवों के बाद भी यदि वे विश्वविद्यालय की साख को बट्टा लगाने की कोशिश करते हैं तो उनकी योग्यता स्वयमेव संदिग्ध हो जाती है। आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, वह अपनी संस्था से बड़ा नहीं हो सकता। जब उसे लगे कि वह संस्था से बड़ा हो गया है तो उसे संस्था छोड़ देनी चाहिए। यदि वह स्वयं ऐसा नहीं करता तो उसे निकाल बाहर करना चाहिए। पर लगता है हमने महाभारत को सिर्फ पढ़ा, उससे कोई सीख नहीं ली। चंद लोगों की उत्कट महत्वाकांक्षा के चलते हस्तिनापुर नेस्तनाबूद हो गया। पूरा कुरुवंश बदनाम हो गया। इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जब राजा बनने की उत्कट महत्वाकांक्षा के चलते लोगों ने सिंहासन से गद्दारी की और अंत-पंत राज्य पर विदेशी हुक्मरानों का कब्जा हो गया। यह दौर भण्डा फोडऩे का है। एक जानकारी मिलती है और लोग दौड़कर पहले पुलिस और फिर मीडिया के पास पहुंच जाते हैं। कुछ साबित होने से पहले ही आरोप समाचार बन जाता है। एक दौर था जब अंत:वस्त्रों को दूसरे कपड़ों के नीचे रखकर धूप दिखाई जाती थी। अब तो जब तक कच्छे का ब्राण्ड जींस के ऊपर से न झांके, बात ही नहीं बनती।
Gustakhi Maaf: आपसी झगड़े में विश्वविद्यालय की फजीहत
