-दीपक रंजन दास
कभी-कभी नियम कानून भी जी का जंजाल बन जाते हैं. नियम कानून के चक्कर में पड़कर राजनांदगांव में शवों की मिट्टी खराब की जा रही है. मेडिकल कालेज और जिला अस्पताल के बीच शवों का बंटवारा कर दिया गया है. यह बंटवारा मृतक के थाना क्षेत्र को आधार बनाकर किया गया है. यदि मृतक शहरी थाना क्षेत्र का है तो उसका शव परीक्षण (पोस्टमार्टम) मेडिकल कालेज में होगा. यदि मृतक ग्रामीण क्षेत्र का हुआ तो उसका पोस्टमार्टम जिला अस्पताल में होगा. मरीज की मौत मेडिकल कालेज हॉस्पिटल में हो या जिला अस्पताल में, उसे रहवास के थाना क्षेत्र के हिसाब से पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाना है. नतीजा यह निकला है कि मृत्यु के बाद शवों को पीएम के लिए जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बीच चक्कर काटना पड़ रहा है. मृतक के परिजनों के लिए यह एक अनावश्यक परेशानी का सबब बन गया है. दरअसल, नियम कानून कुछ खास उद्देश्यों को लेकर बनाए जाते हैं. मसलन मोहला-सारंगढ़-खैरागढ़ को जिला घोषित कर दिया गया है. इससे यहां के स्वास्थ्य केन्द्र जिला अस्पताल बन गए हैं. पर इन जिला अस्पतालों का उन्नयन होना अभी बाकी है. लिहाजा मरीजों को रिफर करने के अलावा डाक्टरों के पास कोई चारा नहीं है. मुसीबत यह है कि मरीजों को जिला अस्पताल से जिला अस्पताल रिफर नहीं किया जा सकता. जिला अस्पतालों को समान सुविधाओं वाला अस्पताल माना जाता है. मरीज को बेहतर इलाज के लिए ही रिफर किया जा सकता है. राजनांदगांव का जिला अस्पताल सुविधाओं के लिहाज से मोहला-सारंगढ़-खैरागढ़ जिला अस्पताल से कहीं बेहतर स्थिति में है. पर रेफरल के नियमों के चलते मरीजों को अब यहां नहीं भेजा जा सकता. इसलिए मरीज मेडिकाल कालेज अस्पताल रिफर किये जा रहे हैं. वहां मृत्यु होने पर पोस्टमार्टम के लिए उन्हें जिला अस्पताल भेजना पड़ रहा है. ऐसा भी नियमों के तहत ही किया जा रहा है. ऐसे में नियमों को शिथिल किये जाने का भी प्रावधान है. पर इसके लिए जिला अस्पताल को ही ठोस पहल करनी होगी. शासन का उद्देश्य लोगों के लिए सुविधाओं का निर्माण और विस्तार करना है. पर कुछ अफसर नियम कानून का हवाला देकर शासन की मंशा पर ही पानी फेरते रहते हैं. ऐसा पूरे देश में होता है. उन्हें समस्या का हल ढूंढने की दिशा में भी प्रयास करना चाहिए. स्थितियों को दर्शाते हुए अनुमति ही तो लेनी है. प्रत्येक अधिकारी को यह समझना होगा कि उन्हें दिए गए अधिकारों के साथ कुछ जिम्मेदारियां भी जुड़ी हुई होती हैं. जिला चिकित्सा अधिकारी का यह भी दायित्व है कि वह अपने जिले के मरीजों को होने वाली परेशानियां का हल ढूंढे. परेशानियों को हल करने की दिशा में प्रयास करे. नियम ही तो हैं, उन्हें बदला भी जा सकता है. कम से कम शिथिल तो किया ही जा सकता है. कागज तो चपरासी भी दिखा सकता है, इसके लिए अधिकारी की क्या जरूरत.