-दीपक रंजन दास
कौशल विकास योजना को पलीता लग गया है. शिक्षा माफिया ने इसपर कब्जा कर लिया है. बच्चों को भर्ती कर लिया जाता है. सरकार से बिल भी वसूल लिया जाता है. बच्चों को प्रमाणपत्र भी मिल जाता है पर उन्हें नौकरियां नहीं मिलतीं. यहां नौकरियों के आशय को भी समझना होगा. यदि नौकरी का मतलब केवल सरकारी नौकरी है तो यह ख्वाब तो कभी पूरा नहीं हो सकता. नौकरी का मतलब यदि रोजगार से है तो 60 से 70 फीसदी प्रशिक्षितों को रोजगार मिल जाता है. वैसे भी लोग क्या उम्मीद कर रहे थे. कौशल विकास का सर्टिफिकेट लेकर लोग आईटीआई और पालीटेक्नीक को मात दे देंगे? यदि ऐसा सोचा था तो गलत सोचा था. ऐसा कभी हो नहीं सकता. देश में आज रोजगार और स्वरोजगार की बातें हो रही हैं. जिस किसी ने भी अच्छे संस्थान से अपनी पसंद के क्षेत्र में कौशल विकास किया होगा, वह ज्यादा दिनों तक खाली नहीं बैठेगा. अच्छे संस्थान से यहां आशय बड़े संस्थान से नहीं है. अच्छे संस्थान से मतलब ऐसे संस्थान से है जो प्रशिक्षुओं को हैण्ड्सऑन ट्रेनिंग उपलब्ध कराता हो. प्रशिक्षु कोई न कोई हुनर सीखकर निकलता हो. प्रशिक्षण के नाम पर एक दो टाइमपास टाइप के प्रशिक्षक रखकर लोग केन्द्र चला रहे हैं. प्रशिक्षु भी टाइम पास ही कर रहे हैं. इन्हें किसी संस्थान में हैण्ड्सऑन ट्रेनिंग के लिए भेजा भी जाता है तो वहां इनसे चपरासी का काम ही लिया जाता है. यह काम वह बिना किसी प्रशिक्षण के भी कर सकता था. भिलाई की एक नामचीन संस्था भी कौशल विकास करवा रही है. यहां बेडसाइड अटेंडेंट का कोर्स चलता है. भिलाई इस्पात संयंत्र मेन हॉस्पिटल में बेडसाइड अटेंडेंट का कार्य पास के मोहल्ले में रहने वाली महिलाएं करती थीं. बिना किसी प्रशिक्षण के भी नर्सों के सहयोग से वे स्वयं को मरीजों की जरूरत के अनुसार ढाल लेती थीं. रोगी की स्थिति के अनुसार 500 से 1000 रुपए प्रतिदिन तक वे कमा लेती थीं. बाद में मोहल्ला यहां से हटा दिया गया पर कुछ महिलाएं अब भी यहां सेवा दे रही हैं. सर्टिफिकेट प्रेमी भारत में इस कार्य के लिए सर्टिफिकेट कोर्स प्रारंभ कर दिया गया. 19-20 साल के युवा प्रशिक्षण लेने पहुंचे. उन्हें लगा होगा कि यह कोई नर्सिंग का कोर्स है जिसमें वर्दी पहनकर हाथ में ट्रे लेकर घूमना रहेगा. कौशल विकास में नाम लिखाने के बाद जब ये ट्रेनिंग के लिए अस्पताल पहुंचे तो इनकी आंखें खुलीं. पता चला कि यह तो आयागिरी का काम है. दिल टूट गया पर किसी तरह कोर्स पूरा कर लिया. स्टाइपेंड लिये और अलग हो गए. इस तरह के कार्यों को दिल से स्वीकार करने की एक उम्र होती है. युवा इसमें रुचि लेंगे, ऐसा सोचना भी नादानी है. वैसे एक अच्छी बात यह है कि बावजूद इस तरह के फालतू कोर्स के छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर घट रही है. ताजा आंकड़ों की मानें तो प्रदेश में केवल 0.5 प्रतिशत बेरोजगारी है.