-दीपक रंजन दास
आज छत्तीसगढ़ एवं उसके नगरीय निकायों पर कांग्रेस का कब्जा है. पंद्रह साल सत्ता में रही भाजपा फिलहाल हाशिए पर है. अगले विधानसभा चुनावों को एक साल से भी कम समय रह गया है. ऐसे में पार्टियों का चुनावी मोड में आना स्वाभाविक है. श्रोताओं, पाठकों और दर्शकों का चुनावी इंटरटेनमेंट शुरू भी हो गया है. कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेताओं के चुटीले शब्दबाण लोगों का खूब मनोरंजन कर रहे हैं. पर भाजपा कार्यकर्ताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि केन्द्र में उनकी सत्ता है. वो देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी पार्टी के पास एक बड़ा समर्थक बेस है. करोड़ों लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “डाईहार्ड फैन” हैं. पर इनकी हरकतें किसी क्षेत्रीय पार्टी जैसी हो रही है. रायपुर नगर निगम के घेराव के दौरान भाजपा समर्थकों ने जो तांडव किया है वह किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के समर्थकों, कार्यकर्ताओं या नेताओं को शोभा नहीं देती. यह अराजकता वाली स्थिति है. प्रदर्शनकारी नगर निगम की इमारत पर बाहर से चढ़ने की कोशिश करते रहे. बंद गेट पर झूमाझटकी की. पुलिस वालों के साथ हाथापाई भी की. महिला पुलिस कर्मियों को चोटें पहुंचाईं. पुलिस अधिकारियों के कंधे से स्टार खींचने की कोशिश की गई. पुलिस ने संयम से काम लिया और बलप्रयोग नहीं किया. पुलिस को पता था कि मार खाया हुआ कार्यकर्ता नेता बन जाता है. उसने किसी को यह मौका नहीं दिया. आखिर क्या साबित करना चाहते थे भाजपाई? क्या वो देश के सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों से असहमत हैं? क्या असहमति व्यक्त करने यह तरीका उन्हें जायज लगता है? उनकी इन हरकतों का खामियाजा अब पार्टी को हर शहर में उठाना पड़ सकता है. लोगों के दिमाग में रायपुर नगर निगम पर चढ़ रहे लोगों की फोटो छप गई है. भिलाई की ही बात करें तो नगर निगम में एक एमआईसी सदस्य ने भाजपाइयों को गुंडा कह दिया. दरअसल, एक के बाद एक पिटते मुद्दों से भाजपा बौखलाई हुई है. उसकी हरकतों में यह बौखलाहट साफ दिखाई दे रही है. किसी भी सत्ता के खिलाफ असंतोष का होना स्वाभाविक है. पर भाजपा असंतोष के कारणों को ढूंढकर जनता के बीच जाने को तैयार नहीं हैं. अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए वह तोड़फोड़ की रणनीति पर काम करती हुई प्रतीत होती है. छत्तीसगढ़ में ऐसी किसी तोड़फोड़ को स्वीकार्यता नहीं है. एक समय था जब ऐसी हरकतें एनएसयूआई करती थी. लोगों के बीच उस दौर में एनएसयूआई की कोई अच्छी छवि नहीं थी. पर वक्त के साथ एनएसयूआई ने खुद को संभाल लिया और आज एनएसयूआई कार्यकर्ता पार्षद, विधायक बनकर समाज में घुलमिल रहे हैं. तो फिर क्या कारण है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में अपनी संभ्रांत छवि को त्यागकर छिछोरी हरकतों पर उतर आई है? स्मरण रहे कि छटपटाहट से नहीं बल्कि अनुशासित सेना और अच्छी रणनीति से ही युद्ध जीते जा सकते हैं. क्या भाजपा इसके लिए तैयार है?
Gustakhi Maaf: कहीं गलती तो नहीं कर रही भाजपा?




