अंबिकापुर/दिल्ली (एजेंसी)। सरगुजा में हसदेव अरण्य स्थित परसा कोल ब्लॉक खनन परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि विकास के रास्ते में न आएं। वहीं परियोजना का विरोध कर रहे लोग फिर से एकत्र हो गए। उनके आंदोलन के 275 दिन पूरे हो गए हैं। ग्रामीणों ने छत्तीसगढ़ सरकार की नीतियों पर रोष जताते हुए आंदोलन तेज करने की बात कही है।
लंबित याचिकाओं को खनन के खिलाफ नहीं माना जाएगा
दरअसल, परसा कोल ब्लॉक के आदिवासी भू-विस्थापितों ने शुक्रवार को याचिका दायर की थी। इस पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच में सुनवाई हुई। बेंच ने किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। साथ ही स्पष्ट किया कि, परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली लंबित याचिकाओं को खनन के खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिबंध के रूप में नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने कहा- हम अंतरिम राहत देने से इनकार करते हैं
बेंच ने कहा कि, ‘हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस पर बहुत स्पष्ट हैं। हम कानून के तहत आपके अधिकारों का निर्धारण करेंगे लेकिन विकास की कीमत पर नहीं। कहा कि, ‘अंतरिम राहत से इनकार किया जाता है। हम स्पष्ट करते हैं कि इन अपीलों का लंबित रहना परियोजना के रास्ते में नहीं आएगा। कोर्ट अपीलकर्ताओं की ओर से तर्कों में ठोस पाता है तो क्षतिपूर्ति के लिए निर्देशित किया जा सकता है।
स्वीकृति रद्द होने तक जारी रहेगा आंदोलन
वहीं हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर आर्मो ने कहा कि राज्य सरकार ने परसा खदान की वन स्वीकृति को निरस्त करने केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को पत्र लिखा है। इसमें जन आक्रोश की बात है, लेकिन फर्जी ग्राम सभा और पर्यावरणीय चिंताओं के कोई उल्लेख नहीं किया। वे स्वयं ही अंतिम वन स्वीकृति निरस्त कर सकते हैं। जब तक सभी खदानें आधिकारिक रूप से निरस्त नहीं कि जाती, आंदोलन जारी रहेगा।