-दीपक रंजन दास
भारतीय समाज पूजा-पाठ से लेकर शादियों तक पर जमकर फिजूलखर्ची करता है. दो-चार दिन के आयोजन पर साधारण परिवार भी लाखों रुपए खर्च कर देते हैं. कई मामलों में यह रकम उधार लेकर उड़ाई जाती है. शादियों के लिए तो बैंक भी कर्ज देते हैं. परिवारों को इस कर्ज से बचाने के लिए एक तरफ जहां विभिन्न समाजों ने सामूहिक विवाह की पहल की है वहीं गायत्री परिवार भी सामूहिक विवाहों को प्रोत्साहन देता है. कुछ राज्य सरकारें भी सामूहिक विवाहों का आयोजन करती हैं और वर-वधु को कुछ राशि के साथ नया घर बसाने के लिए आवश्यक वस्तुओं का उपहार भी देती है. पर दिल है कि मानता नहीं. शादी कौन सी बार-बार होनी है. शादी को यादगार बनाना तो बनता है. हिन्दी फिल्मों और टेलीविजन सीरियलों ने वैवाहिक संस्कारों का ऐसा खाका खींचा है कि मूल संस्कारों की बजाय आडम्बर ही प्रधान हो गया है. 50-60 साल पहले तक वर-वधु की शुभदृष्टि होती थी. कन्या पान के पत्ते से चेहरा ढंक कर आती थी और मंडप में ही दूल्हा पहली बार उसका चेहरा देखता था. आधुनिक समाज इससे काफी आगे निकल चुका है. यह रस्म आज भी है पर इससे पहले ही जबरदस्त प्री-वेडिंग फोटोशूट हो जाती है. यह कोई मामूली फोटोग्राफी नहीं होती. इसका भी लाखों का पैकेज होता है. इसके लिए शूटिंग डेस्टिनेशन और लोकेशन होते हैं. एक पूरी फिल्म बनती है. इसमें स्क्रिप्ट भी होता है. वर-वधु इस फिल्म के हीरो-हिराइन होते हैं. कुछ लोग इससे भी आगे निकल चुके हैं. शादी के पंडाल में ही एक विशाल डिजिटल स्क्रीन लगा होता है. इस पर प्री वेडिंग शूट का वीडियो और स्टिल्स चल रहा होता है. यहां तक तो फिर भी ठीक है. आप अपने पैसे उड़ाओ, इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? पर जब आपका शौक किसी और की मुसीबत बन जाए तो यह अपराध की श्रेणी में भी आ जाता है. गली मोहल्लों में जमकर आतिशबाजी करते हुए, धुमाल और डीजे के साथ जब बारात निकलती है तो लोगों का जीवन नर्क हो जाता है. फोन पर लगे लोग तो गालियां बकते ही हैं, बीमार लोग भी अपने बिस्तरों पर फडफ़ड़ाने लगते हैं. सड़कों पर ट्रैफिक जाम की स्थिति बन जाती है. सादा जीवन, बचत और निवेश के लिए जाना जाने वाला जैन समाज यहां भी आगे आया है. कमोबेश जैन समाज एक सम्पन्न समाज है. कैटरिंग, टेंट हाउस, मैरिज पैलेस, वेडिंग कलेक्शन जैसे बिजनेस का एक बड़ा हिस्सा इनके ही हाथों में है. ये चाहें तो करोड़ों रुपए का आयोजन लाखों में कर सकते हैं. पर यह समाज फिजूलखर्ची और निवेश में फर्क समझता है. समाज ने वैवाहिक आयोजनों की फिजूलखर्ची पर विराम लगाने का फैसला किया है. लगभग दो दशक पहले सिख समाज ने भी रात की पार्टियों और शराब पर रोक लगाई थी. डीजे शांत होगा, तभी तो शहनाई की गूंज और ब्रास बैंड के गीत सुनाई देंगे.