-दीपक रंजन दास
कभी आरक्षण को वोट बैंक साधने का कांग्रेसी नुस्खा बताने वाली भाजपा इन दिनों आदिवासियों को आरक्षण दिलाने के मुद्दे को लेकर सड़क पर बैठी है. महंगाई के विरोध का उसका मुखौटा तो सालों पहले उतर चुका है. पर बलात्कार के आरोपियों को बचाने के लिए वह इस हद तक गिर जाएगी, इसकी उम्मीद तो कतई नहीं थी. बलात्कार के आरोपी का दोष अदालत में सिद्ध हो, इससे पहले ही उसका मीडिया ट्रायल होता रहा है. लोग उसके पुतले को फांसी दे देते रहे हैं, आग लगाते रहे हैं, जूते चप्पलों से पुतले की धुनाई भी होती रही है. लोग मोमबत्तियां लेकर निकलते हैं. अदालत परिसर में भी बलात्कार के आरोपियों पर हमले होते रहे हैं. कभी किसी ने नहीं पूछा कि आरोपी के निर्दोष होने की कितनी संभावना है. पर यहां तो उलट गंगा बह रही है. बलात्कार के आरोपी को इसलिए दूधभात दिया जा रहा है कि वह भाजपा का प्रत्याशी है. बेशर्मी की हद देखिए कि उसके पक्ष में पार्टी लामबंद हो रही है. इसे आदिवासियों के सम्मान का मामला बता रही है. अपराधी किसी समाज का नहीं होता. किसी भी अपराध के 100 में से 99 फीसद मामलों में पीडि़त भी उसी समाज का होता है. किसी व्यक्ति के अपराध का समाज से क्या लेना देना? तो क्या आदिवासी समाज का अधिकार आरक्षण से लेकर बलात्कार तक जाता है? इस बात का खुलासा भाजपा को करना चाहिए. बलात्कार के ऐसे सैकड़ों मामले मिल जाएंगे जहां पीडि़ता आरोपियों में से किसी एक-दो की ही शिनाख्त कर पाती है. शेष आरोपियों की धरपकड़ इन्हीं आरोपियों के बयान के आधार पर की जाती है. इसमें ऐसे नाम भी शामिल हो सकते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से घटनास्थल पर उपस्थित नहीं थे. देश का कानून अपराध करने वालों, अपराध में सहयोग देने वालों और अपराध की योजना बनाने वालों को समान रूप से अभियुक्त मानता है. भाजपा स्वयं स्वीकार करती है कि तीन साल पुराने इस मामले में अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं किया गया है. ऐसा अकसर इसलिए होता है कि कुछ अभियुक्तों का रुतबा इतना बड़ा होता है कि पुलिस उनका बयान तक नहीं ले पाती. जब यह मामला दर्ज हुआ था, तब आरोपी किसी उपचुनाव का प्रत्याशी नहीं था. इसलिए यह संभावना तो पहले ही खारिज हो जाती है कि षडयंत्रपूर्वक उसे फंसाया गया. मामला यह भी नहीं है कि आरोपी दोषी है या नहीं. स्वच्छता और शुचिता का दावा करने वाली पार्टी को यह बताना चाहिए कि एक आरोपी को प्रत्याशी बनाना यदि जरूरी भी था, और वह उसे निर्दोष भी मानती है तो इसका उल्लेख चुनाव घोषणा पत्र में क्यों नहीं किया गया? इससे तो “मीठा मीठा गप-गप और कड़वा कड़वा थू-थू” की कहावत ही चरितार्थ हो रही है. कांग्रेस या आप करे तो चुनावी कदाचार और भाजपा करे तो? दोहरी मानसिकता और बनावटी चेहरे का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा?