-दीपक रंजन दास
भारतीय जनता पार्टी के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने का दावा किया है. महतारी हुंकार रैली से पहले युवा मोर्चा की मशाल रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह आग तभी बुझेगी जब हम कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. बेचारे को यही नहीं पता कि सरकारों को पार्टी नहीं, जनता उखाड़ कर फेंकती है. ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जनता ने भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार को ऐसे उखाड़ा था जैसे कोई खेत से खरपतवार उखाड़ता है. वैसे भी इस तरह की बातें कौन करता है. बदले की आग वाली भाषा तो राजपूत और ठाकुर बोला करते थे. कम से कम हिन्दी फिल्मों में तो हमने यही देखा है. पिछले विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ ताजा-ताजा बालिग हुआ था. 18 साल का छत्तीसगढ़ ऊब गया था, एक ही चेहरा और एक जैसी बातें सुन-सुन कर. उधर मोदी जी के नेतृत्व में देश-भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंधी चली और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार सोलह साल की होने से पहले ही उड़ गई. दरअसल, राजनीति की यही बीमारी है. अच्छी भली चल रही सरकार के खिलाफ कोई रचनात्मक आंदोलन खड़ा करने की बजाय शिगूफेबाजी का दामन थाम लिया जाता है. एक से एक नाम तलाशे जाते हैं. नया शिगूफा है “महतारी हुंकार रैली” का. देश जानता है कि जिसकी जेब में पैसा होता है वह भीड़ इकट्ठा कर ही लेता है. इसके लिए भी स्पेशलिस्ट सेवाएं होती हैं. ट्रक, ट्रैक्टर, ट्रेलर में भर कर कृषि मजदूरों को उठा लाते हैं. सोशल मीडिया पोस्ट के इस दौर में शहरी शौकीन भी इससे जुड़ जाते हैं. माहौल तो बनता है पर रिजल्ट नहीं आता. ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में सबकुछ सही चल रहा है. पर यह भी मानना पड़ेगा कि योजनाएं बहुत अच्छी बन रही हैं. गांधी जी से लेकर कलाम साहब तक के सपनों का भारत गढ़ने की दिशा में छत्तीसगढ़ पहलकदमी कर रहा है. पर यह सबके सहयोग के बिना संभव नहीं है. यह सहयोग रचनात्मक और आलोचनात्मक दोनों हो सकता है. पर अपने यहां भीड़तंत्र को ही लोकतंत्र मान लिया गया है. स्मृति ईरानी, रेणुका सिंह जैसे नेता छत्तीसगढ़ आने वाले हैं. वे शांत छत्तीसगढ़ की फिजां में जहर घोलने की कोशिश करेंगी. देश भूल जाएगा कि नोटबंदी की मार जनता ने सही और रसूखदारों की तिजोरियां अब भी नोटों के बंडल उगल रही हैं. जिसे कम करने का वायदा कर केन्द्र में उनकी सरकार आई वही महंगाई आज अपने चरम पर है. महिलाओं के खिलाफ अपराध अकेले छत्तीसगढ़ में नहीं बल्कि पूरे देश में बढ़ रहे हैं, वहां भी जहां भाजपा की सरकारें हैं. हरियाणा के छाबला, यूपी के गाजियाबाद, फरीदाबाद के बल्लभगढ़, मध्यप्रदेश के सीधी और खंडवा, पश्चिम बंगाल के ऊलूबेड़िया में पिछले एक साल के भीतर “निर्भया कांड” जैसी दिरन्दगी हुई. तब क्या इन नेताओं का गला बैठा हुआ था?