मातृ धरा पर अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन कर रोमांचित हुए अप्रवासी छत्तीसगढिय़ा
रायपुर। असम में वर्षों से निवासरत छत्तीसगढिय़ों ने कुरूख करम नृत्य प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के साईंस कॉलेज मैदान में चल रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के मुख्य मंच पर पहली बार नृत्य प्रस्तुति का अवसर मिला।
छत्तीसगढ़ से लगभग 4-5 पीढ़ी पहले असम गए लोगों को आज भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जुड़ाव है। वे अपनी कला और संस्कृति को आज भी नहीं भूले हैं। इतनी दूर असम में बसे होने के बावजूद भी छत्तीसगढ़ से उन्हें वही प्रेम और लगाव है जैसा उनके पूर्वजों का था। इसी लगाव की वजह से राजधानी में चले रहे राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में शामिल होने यहां पहुंचे।
असम में निवासरत छत्तीसगढिय़ों ने यहां मुख्य मंच पर कुरूख करम नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति दी। यह नृत्य पंथी और करमा का मिला-जुला रूप है। नृत्य समूह की मुखिया सुश्री सुरभि सिंह ने बताया कि 4-5 पीढ़ी पूर्व उनके पूर्वज छत्तीसगढ़ से असम राज्य के चाय बागान में काम करने पहुंचे थे। अब वे असम के मूल निवासी बन चुके हैं। छत्तीसगढ़ और असम का रहन-सहन, आचार-विचार, श्रृंगार, पहनावा लगभग एक दूसरे से मिलता जुलता है।
सुश्री सुरभि सिंह ने बताया कि असम में माथे पर लगाने वाली बिंदी को टिक्का, पायल को बाजोर, गले में पहनने वाले गहने को ठोसा और चंदमाला कहते हैं। इसी प्रकार खान-पान में आटा चावल आटा से बनने वाली चीला को चीरकअप, फरा को बरकसमा के नाम से जाना जाता है। स्वाद और बनाने का तरीका भी लगभग मिलता-जुलता है। उन्होंने बताया कि कुरूख करम नृत्य बस्तर के करमा नृत्य से मिलता-जुलता है। उन्होंने सभी कलाकारों की ओर से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव प्रशंसनीय है। इस आयोजन से आदिवासियों की संस्कृति को नई पहचान मिल रही है। इस आयोजन में शामिल होकर उन्हें जो सम्मान दिया गया है, इसके लिए उन्होंने आभार व्यक्त किया है। छत्तीसगढ़ सरकार की इस पहल से असम में रहने वाले छत्तीसगढिय़ा लोगों को भी एक बार फिर छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति से जुडऩे का मौका मिला है।