-दीपक रंजन दास
देश के प्रधानमंत्री की तरह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी 24&7 काम में जुटे हैं. हाल ही में उन्हें जनता की कसौटी पर देश का सर्वाधिक लोकप्रिय मुख्यमंत्री बताया गया है. लोकप्रियता अपनी जगह है और कामकाज अपनी जगह. पीएम और सीएम 24-24 घंटे काम कर रहे हैं पर नतीजे नहीं आ रहे. आम आदमी के समक्ष समस्याएं जस की तस हैं. राज्य के कोने-कोने से भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और भर्राशाही की खबरें आ रही हैं. मुख्यमंत्री के लिए ये खबरें परेशान करने वाली हो सकती हैं. मुख्यमंत्री जहां भी जा रहे हैं, नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं, निर्देश दे रहे हैं. कहीं स्कूल खराब मिल रहे हैं तो कहीं सरकार की ‘गेम चेंजिंगÓ गोठान योजना सूली पर चढ़ी दिखाई दे रही है. लोग सड़कों पर गड्ढों की गिनती कर रहे हैं. दरअसल, बात ईमानदारी या नीयत की नहीं है. बात कुप्रबंधन की है. एक आदमी अपने घर का तो पूरा-पूरा हिसाब रख नहीं पाता, एक जिला या एक पूरे राज्य का ख्याल कैसे रखेगा? इच्छाशक्ति हो तो रास्ते भी निकल ही आते हैं. एक लंबा चौड़ा सरकारी महकमा आपकी सेवा में हाजिर है. इन्हें काम पर लगाइए. अधिकार दीजिए और जिम्मेदारी भी तय कीजिए. आप सिर्फ मुखिया के कान मरोडिय़े, बाकी उसपर छोड़ दें. किसके कान मरोडऩे हैं और किसके पु_े सेंके जाने हैं यह उसे तय करने दें. आप सिर्फ नतीजों पर नजर रखें. इसी को काम का युक्तियुक्त विभाजन कहते हैं. यही सत्ता का विकेन्द्रीकरण है. सबकुछ सीएम हाउस से नहीं हो सकता. देश का मौजूदा शासन पैटर्न दोषपूर्ण है. निचले स्तर पर कार्यवाही से ढांचा नहीं बदलता. शिक्षक गैर हाजिर मिला तो हेडमास्टर को नोटिस थमा दिया. ब्लाक शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, स्कूली शिक्षा विभाग के सचिव और खुद स्कूली शिक्षा मंत्री बेदाग बरी हो गए. आप ऊपर से कार्यवाही शुरू कीजिए, नीचे वालों को टाइट करने का जुगाड़ वे खुद लगा लेंगे. पूरे प्रदेश की व्यवस्था सुधर जाएगी. आप एक शिक्षा मंत्री को डांट सकते हो. वह शिक्षा सचिव से लेकर सभी जिला शिक्षा अधिकारियों की क्लास ले सकता है. जिला शिक्षा अधिकारी ब्लाक शिक्षा अधिकारियों की क्लास लेगा तो स्कूल अपने आप दुरुस्त हो जाएंगे. बात रिजल्ट की आएगी तो रिश्वत लेकर तबादला करने का चलन अपने आप खत्म हो जाएगा. पोशाकी मंत्री-संत्रियों का दौर अब बीत चला है. इन्हें काम पर लगाए बिना राज्य नहीं संभल सकता. बात रिजल्ट देने की होगी तो जिम्मेदार अपनी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद की झोली को खूंटे पर टांगने के लिए विवश हो जाएंगे. अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है बिसात के बिछने को. थोड़े ही दिनों में अखबार के पन्ने खराब सड़कों, बदहाल गोठानों, खस्ताहाल अस्पतालों, बिना छप्पर के स्कूलों की स्टोरी से रंगे जाने लगेंगे. बढ़ते अपराध और बढ़ती बेरोजगारी के आंकड़े छपने लगेंगे. बेहतर हो समय पर सही कदम उठाए जाएं. यह सबके लिए अच्छा होगा.