भोपाल. दशहरा पर जहां पूरे देश में अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में रावण के पुतले की दहन किया जाता है तो दूसरी ओर मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के दो गांवों में इस दिन अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां रावण दहन के बजाय उसकी पूजा की जाती है। विदिशा जिले का एक गांव रावन है। यहां रावण की पूजा इष्टदेव के रूप में होती है। यहां रावण की लगभग दस फीट लंबी व तीन फीट चौड़ी लेटी हुई प्रतिमा है। वहीं लटेरी के कालादेव में राम की सेना पर रावण की सेना द्वारा पथराव किया जाता है। जबकि बाकी शहरों और ग्रामीण क्षेत्र में अधर्म के प्रतीक के रूप में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है।
नाभि पर किया जाता है घी का लेप
दशहरा के दिन रावन गांव में रावण के दरबार में पहुंचकर सैकड़ों लोग उनकी पूजा करते हैं। रावण की लेटी हुई प्रतिमा की नाभि पर घी का भी लेप किया जाता है। ताकि भगवान राम द्वारा रावण की नाभि में मारे गए अग्निबाण की पीड़ा से उनको राहत मिले। इसके साथ ही यहां दिनभर पूजा-अनुष्ठान होते हैं। गांव का नाम यहां मौजूद प्राचीन रावण प्रतिमा के कारण ही रावन पड़ा है। रावण के मंदिर में करीब 10 फीट लंबी और 3 फीट चौड़ी लेटी हुई प्रतिमा है। लोग इन्हें रावण बाबा के नाम से जानते हैं।
यहां राम की सेना पर बरसाए जाते हैं पत्थर
लटेरी के आनंदपुर क्षेत्र में कालादेव का दशहरा प्रसिद्ध है। यहां राम-रावण की सेनाओं के बीच पत्थर चलते हैं। बीच मैदान में रावण की प्रतीक प्रतिमा है। मैदान में विजय का ध्वज लगाया जाता है। इसे हासिल करने कालादेव गांव के लोग रामजी के जयकारे लगाते हुए दौड़ते हैं। वे ध्वज की परिक्रमा करते हैं। लेकिन, इस बीच रावण की सेना माने जाने वाले भील उन पर गोफन से पत्थर बरसाते हैं। सैकड़ों पत्थरों में से भी कोई पत्थर राम सेना के लोगों को नहीं लगता। इसके बाद भगवान राम का राजतिलक किया जाता है।