कवर्धा. छत्तीसगढ़ के कवर्धा में नवरात्रि के दौरान एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां के तीन देवी मंदिरों से दुर्गा अष्टमी की आधी रात को खप्पर निकाला जाता है। नगर के मां दंतेश्वरी मंदिर, मां चण्डी मंदिर और मां परमेश्वरी मंदिर से मध्यरात्रि को खप्पर निकाली जाती है। मध्यरात्रि 12.15 बजे मां दंतेश्वरी मंदिर से पहला खप्पर अगुवान की सुरक्षा में निकलेगा। इसके 10 मिनट बाद ही मां चण्डी मंदिर से और फिर 10 मिनट के अंतराल में मां परमेश्वरी मंदिर से खप्पर निकाली जाएगी, जो नगर भ्रमण करेगी। विभिन्न मार्गों से गुरजते हुए मोहल्लों में स्थापित 18 मंदिरों के देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान किया जाता है।
इस तरह का विधान
अष्टमी की रात्रि 10.30 बजे माता की सेवा में लगे पण्डों द्वारा परंपरानुसार 7 काल, 182 देवी-देवता और 151 वीर बैतालों की मंत्रोच्चारणों से आमंत्रित कर अग्नि से प्रज्ज्वलित मिट्टी के पात्र(खप्पर) में विराजमान किया जाता है। 108 नींबू काटकर रस्में पूरी की जाती है। मध्य रात्रि 12 बजे दैविक शक्ति से प्रभावित होते ही सकरी नदी में स्नान के बाद द्रुतगति से पुन: वापस आकर आदिशक्ति देवी मूर्ति के समक्ष बैठकर उपस्थित पंडों से श्रृंगार करवाया जाता है। इसके बाद खप्पर मंदिर से निकाली जाती है।
इसलिए निकालते हैं खप्पर
खप्पर निकालने के पीछे ऐसी मान्यता है कि इससे धार्मिक आपदाओं से मुक्ति मिलती है। नगर में विराजमान देवी-देवताओं का रीति रिवाज के अनुरूप मान मनौव्वल कर सर्वे भवन्तु सुखिन: की भावना स्थापित होता है। भारतवर्ष में संभवत: केवल कवर्धा शहर में ही नवरात्रि की दुर्गा अष्टमी पर देवी मंदिरों से खप्पर निकालने की परंपरा कायम है।