-दीपक रंजन दास
पढ़े लिखे भारतीय परिवारों के बच्चे अब पॉट्टी करते हैं. नित्यकर्मों से फारिग होने के लिए वॉशरूम जाते हैं. थैंक-यू का हिन्दी संस्करण जुबान तक आकर फंस जाता है और आई-लव-यू के हिन्दी पर्यायवाची का तो लोप ही हो चुका है. गुड मॉर्निंग तो संस्कारों का हिस्सा हो गया है. ऐसे में हिन्दी पर बहस करना दिलचस्प हो सकता है. हिन्दी राष्ट्रभाषा है या राजभाषा, सम्पर्क भाषा है या उत्तरभारतीयों की बांदी इस पर बहस हो सकती है. पर समय गवाह है कि अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी वह अपने सुर-ताल के साथ आगे बढ़ रही है. आज वह विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. यह और बात है कि दूसरी सबसे बड़ी भाषा बोलने वालों की संख्या हिन्दी बोलने वालों की संख्या से दुगनी है. भारत और चीन दुनिया के दो सर्वाधिक आबादी वाले देश हैं. चीन का मंदारिन 111 करोड़ बोलने वालों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है जबकि आबादी में उसकी बराबरी करने वाले भारत में हिन्दी बोलने वालों की संख्या लगभग 43 करोड़ है. यह कुल आबादी के आधे से भी कम है. दरअसल भारत एक विविधतापूर्ण देश है. यहां कई भाषाएं और बोलियां हैं. इनमें से कुछ तो हिन्दी से भी पुरानी हैं. संस्कृत-पाली-प्राकृत-फारसी-उर्दू के क्रम से आगे बढ़ते हुए हिन्दी का विकास हुआ. उत्तर एवं मध्यभारत की यह प्रमुख सम्पर्क भाषा है. स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दी भाषा ने प्रमुख भूमिका निभाई और इसका प्रसार पूर्व और पूर्वोत्तर के राज्यों तक हो गया. दक्षिण के द्रविड़ भाषा समूह के बीच भी वह पहुंचने लगी. पर ऐसे समय में शुद्ध हिन्दी के नाम पर हिन्दी प्रेमियों को प्रताडि़त करने वाले भी आ धमके. वो लोगों की हिन्दी में नुक्स निकालने लगे और कुछ लोग संकोच वश तो कुछ लोग वितृष्णावश हिन्दी से कट गए. इन्हीं की बदौलत यह वह पहली भाषा बन गई जिसका किसी प्रांत में विरोध हुआ है. आज भी हिन्दी दिवस पर ऐसे लोग मंच से हिन्दी की शुद्धता और शुचिता की बातें करते हुए मिल जाएंगे. जबकि हकीकत यह है कि हिन्दी के प्रचार प्रसार में इनकी ज्यादा भूमिका नहीं है. इनकी हिन्दी तो पुस्तकालयों में कैद हो कर रहने वाली भाषा है. देश दुनिया में हिन्दी का प्रचार प्रसार तो विविध भारती, रेडियो सीलोन, आकाशवाणी जैसे रेडियो स्टेशन, बॉलीवुड की फिल्में और सुगम संगीत की बदौलत हुआ है. शुद्ध हिन्दी वालों की चले तो प्रेमचंद का साहित्य भी आलोचना का शिकार हो जाए. वे अपने समय की हिन्दी का उपयोग करते थे जिसमें उर्दू और फारसी के शब्द बहुतायत में हुआ करते थे. आज भी देश की पुलिस और अदालतें जिस हिन्दी का प्रयोग करती हैं उसमें उर्दू और फारसी ही ज्यादा है. बेहतर हो कि हिन्दी के एक शब्द समृद्ध भाषा बनने की राह में हम रुकावटें न डालें. अन्य भाषाओं के शब्दों को इसमें आने दें. इससे इसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी. कोई भी भाषा अपने व्याकरण के बल पर नहीं बल्कि अपने प्रभाव क्षेत्र के कारण बड़ी भाषा बनती है.