-दीपक रंजन दास
कहते हैं इंसान धरती पर सबसे ज्यादा अक्लमंद प्राणी है. पर यह पूरी तरह सच नहीं है. स्वास्थ्य और शारीरिक क्षमता में कई प्राणी हम इंसानों से कहीं आगे हैं. उन्हें किसी स्कूल कालेज में अखाद्य और कुखाद्य के बारे में पढ़ाया नहीं गया, उनका कोई फिटनेस ट्रेनर नहीं है, उनके पास कोई मेंटॉर भी नहीं है – फिर भी वे हमसे कम बीमार पड़ते हैं, हमसे ज्यादा फिट रहते हैं. बीमार पड़ते हैं तो कभी घास-पत्ता (जड़ी-बूटी) चबाकर तो कभी उपवास रखकर खुद को ठीक कर लेते हैं. परिन्दे अपने लिए आवास बनाते हैं, कुछ जीव बिल में रहते हैं तो कोई खोल और गुफाओं में अपना आश्रय बनाता है. कुछ परिन्दों की कारीगरी तो देखते ही बनती है. जहां तक सुरक्षा का सवाल है तो जिस तरह परवाने शोलों की ओर लपकते हैं और जल कर भस्म हो जाते हैं, ठीक उसी तरह इंसान भी पानी की तरफ खिंचा चला जाता है और डूब कर मर जाता है. ये प्रकृति का अपना विधान है. यहां पढ़ाई-लिखाई और सूचना फलक किसी काम नहीं आते. कोरिया के कोटाडोला थानांतर्गत रमदहा जलप्रपात भी एक ऐसी ही जगह है जहां हर साल लोग पिकनिक मनाने आते हैं और इनमें से कुछ लोगों की डूबने से मौत हो जाती है. प्रशासन ने इसे डेंजर जोन घोषित किया हुआ है. यहां चेतावनी का बोर्ड भी लगा है. पर जब मति मारी जाती है तो पढ़ाई लिखाई किसी काम नहीं आती. वह जाता तो झरना देखने है पर पानी देखते ही नहाने की इच्छा जाग जाती है. परिवार के बड़े-बूढ़े रोकने की कोशिश भी करते हैं पर कौन किसकी सुनता है. कुछ लोग अपने बच्चों को जबरदस्ती पानी में भेजते हैं. जो नहीं जाता उसे डरपोक कहते हैं. वैसे भी लोग पिकनिक के लिए हमेशा पानी वाले स्थान को चुनते हैं. भोजन-पानी के साथ ही कपड़े भी लेकर जाते हैं. गर्मियों में तो यह जुगाड़ समझ में आता है जब शरीर को ठंडा करने पर मन प्रफुल्लित हो जाता है. पर बारिश के दिनों में जब नदी नाले उफान पर होते हैं, झरने खतरनाक हो जाते हैं – तब मटमैले पानी के तेज बहाव में नहाने की कोशिश करना सिवा फितूर के और कुछ नहीं है. हर साल सैकड़ों युवा पानी में डूब जाते हैं. लांसेट के मुताबिक 2017 में 62000 से अधिक लोग डूबने से मर गए. इनमें से अधिकांश स्वेच्छा से नदी या नाले में गए थे. इनमें से लगभग 13 प्रतिशत की उम्र 14 वर्ष से कम थी. 2018 में प्रतिदिन औसतन 83 लोगों की मौत डूबने से हो गई. भारत में यह अप्राकृतिक मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है. जब-जब ऐसे हादसे होते हैं लोग प्रशासन को कोसते हैं. बोर्ड नहीं लगा है, एनडीआरएफ या एसडीआरएफ की टीम तैनात नहीं है, मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं. मदद किससे मांगें? क्या हम बस इतने ही समझदार हैं?
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