एक एक्टर के जिन्दगी में काफी लम्बे समय के बाद ऐसा वक्त आता है, जब उसे अच्छा काम मिलना शुरू होता है और लोग उसके काम पर भरोसा करते है। बॉलीवुड के कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी इन दिनों अभिनय के क्षेत्र में काफी व्यस्त हैं। ‘मिर्जापुर, ‘पाताल लोक और ‘रश्मि रॉकेट के बाद उनकी नई वेब सीरीज ‘द ग्रेट वेडिंग्स ऑफ मुन्नेस रिलीज को तैयार है। खड्गपुर, पश्चिम बंगाल में जन्मे अभिषेक बनर्जी के परिवार में लोगों को फिल्में देखने का बहुत शौक है और उनके परिवार में सभी लोग अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े प्रसंशक रहे हैं। इतने बड़े प्रसंशक कि जब अभिषेक के मामा मनोहर की शादी हो रही थी तो उसी समय अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अग्निपथ टेलीविजन पर आ रही थी और उस फिल्म को देखने के लिए मामा की शादी आधे घंटे रोक दी गई।
कल्पनालोक के नायक रहे अमिताभ
अभिषेक बनर्जी कहते हैं, ‘मेरे चाचा जी अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन है। वह उनके गानों पर नाचा करते थे। लंबे भी हैं। फिर पापा भी मुझे बच्चन साहब जैसे दिखने लगे। मेरे परिवार में सभी अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन है, तो मेरे लिए ये बड़ा फैंटेसी था। जब अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘अग्निपथ का सीन ‘मेरा नाम विजय दीनानाथ चौहान आ रहा था तब मेरे मामा जी की शादी के फेरे आधे घंटे के लिए रोक दिए थे। पूरे घर वाले ये सीन देखने के बाद शादी में शमिल हुए, इतना बड़ा क्रेज था हमारे परिवार में अमिताभ बच्चन का।

साउथ में देखीं रजनीकांत की फिल्में
अभिषेक बनर्जी के पापा अलोक कुमार बंदोपाध्याय सीआरपीएफ में थे। उनका कुछ समय के लिए तमिलनाडु ट्रांसफर हुआ। अभिषेक बनर्जी कहते है, ‘जब मैं साउथ में था, तब रजनीकान्त की फिल्में देख देख कर उनका बहुत बड़ा फैन हो गया। मेरा पढाई में मन नहीं लगता था, बस फिल्में ही देखनी थी। फिल्में देखने के लिए सुबह उठ जाता था लेकिन परीक्षा देने के लिए नहीं। ऐसा था फिल्मों का क्रेज। जब मेरा पढाई में मन नहीं लग रहा था, तो घर में सभी मुझे नौटंकीबाज कहकर बुलाने लगे। यहां तक मेरे टीचर ने भी मुझसे परेशान होकर कह दिया किया कि तुम नौटंकी के ही लायक हो, यही करो। उसके बाद मेरे दिमाग में आया कि क्यों ना मैं एक्टर बन जाऊं?

विरासत में मिला सिनेमा का शौक
अभिषेक बनर्जी कहते है, ‘साउथ में तमिल फिल्में देखकर मुझे तमिल भाषा बोलनी आ गई, पिताजी को लगने लगा कि कहीं मैं हिंदी बोलना भूलकर साउथ इंडियन ही न बन जाऊं, इसलिए वो मुझे हिन्दी फिल्में दिखाते थे। पिताजी ने मुझे सत्यजीत रे की बहुत सारी फिल्में दिखाई हैं जो फिल्म इंस्टीट्यूट में दिखाई जाती है। बाद में मुझे समझ में आया कि पिताजी के साथ जो फिल्में देखता था, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर की फिल्में थी। पिता जी को फिल्में देखने का शौक था लेकिन फिल्में मेरी जिन्दगी बन गई।