-दीपक रंजन दास
बिलासपुर के तालापारा के चार बच्चे अरपा नदी के तेज बहाव में बहने लगे। लोग पुल पर खड़े होकर शोर मचाते रहे। तभी एक भिक्षुक वहां से गुजरा। उसने बच्चों को डूबते देखा तो उफनती नदी में छलांग लगा दी। नदी-नालों में नहाने वाले भिक्षुक की तैराकी विद्या यहां काम आ गई। नदी यहां 20 फीट गहरी है। वह बच्चों को बचा कर किनारे ले आया। ऐसा कोई भिक्षुक ही कर सकता है। बिना अपने जीवन की परवाह किये, बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के, बिना किसी प्रचार की आकांक्षा के वह बच्चों का जीवन बचाने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देता है। वह अपनी व्यक्तिगत क्षमता पर भरोसा करता है, उसका उपयोग करता है। अमीर हो या गरीब, सबको अपनी जान प्यारी होती है। पर इससे भी बड़ी होती है मानवता के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता। जीव मात्र के प्रति दया और सहानुभूति स्वाभाविक गुण हैं। ऐसा व्यक्ति सड़क किनारे घायल पड़े पशु के लिए भी रोता है। यह गुण उन बच्चों में भी होता है जिनका अभी राजनीतिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ है। जिनकी बुद्धि कुटिल इतिहासकारों, व्याख्याकारों ने अभी हर नहीं ली है। भिलाई में ही बच्चों के ऐसे अनेक संगठन हैं जो जीव जंतुओं की रक्षा के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। वे सड़क पर घायल होने वाले जानवरों की मदद करते हैं। अपना पूरा पॉकेट मनी उनपर खर्च कर देते हैं। इतना भी न किया तो इंसान कैसा? इन बच्चों की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। वो न तो पाले के इस तरफ हैं और न उस तरफ। सेक्टर-1 की अंजलि सिंह की टोली घायल जानवरों की मदद करती है। नोवा नेचर की टीम सांपों को पकड़कर सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाती है। इसी तरह एक दशक पहले युवाओं की एक टोली व्यस्त बाजारों के ठेलों के पास से कचरा बीनती दिखाई देती थी। शहर के तमाम वृद्धाश्रमों, अनाथ आश्रमों और विशेष बच्चों की देखभाल के लिए स्थापित केन्द्रों में ऐसे बच्चे दिखाई दे जाते हैं। ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि इनमें राजनीतिक कुटिलता नहीं होती। यह विषय इसलिए कि ज्ञान के देश भारत ने अपने ज्ञान को कुछ इस तरह सहेजा कि वह विलुप्त हो गया। पर इसी देश से बौद्ध भिक्षुओं की टोलियां निकली और अपना ज्ञान बांटती चली गई। आज चीन, कोरिया, जापान, रयुक्यु द्वीपसमूह और वियतनाम इसी धर्म की बदौलत राष्ट्रीय एकता के शीर्ष पर दिखाई देते हैं और हम अपने ही घर को आग लगाए पड़े हैं। कुटिल इतिहासकारों और व्याख्याकारों ने धर्म की ऐसी-ऐसी परिभाषाएं कर दीं जो स्वयं श्रीकृष्ण की भी समझ के परे है। भगवत गीता में जब उन्होंने धर्म की व्याख्या की थी तब धरती पर न तो मुसलमान थे और न ईसाई।
गुस्ताखी माफ: भिक्षुक ने चार बच्चों को डूबने से बचा लिया
