-दीपक रंजन दास
अब तक सरकारी स्कूलों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और महापुरुषों की तस्वीरें लगा करती थी। अब मौजूदा गुरुजियों की तस्वीरें भी चस्पा होंगी। फर्क केवल इतना होगा कि गुरुजी की तस्वीर दीवारों पर नहीं बल्कि नोटिस बोर्ड पर टंकी होगी। इसका फायदा यह होगा कि स्कूल की जांच करने के लिए आने वाले अधिकारियों को पता चल जाएगा कि जो नियुक्त है वही पढ़ा रहा है या कोई और उनकी जगह हाजिरी भर रहा है। दरअसल, प्रदेश के दूरस्थ अंचल के स्कूलों में मूल शिक्षकों के स्थान पर दूसरे शिक्षकों के पढ़ाने की जानकारी मिली थी। इसलिए अब ऐसे सभी स्कूलों में मूल शिक्षकों की तस्वीर लगाने के निर्देश दिए गए हैं। यह भी कहा गया है कि यदि फर्जी शिक्षक मिले तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। समग्र शिक्षा के प्रबंध संचालक नरेन्द्र दुग्गा ने डीईओ को 10 दिनों के भीतर कार्यवाही करने का अल्टीमेटम दिया है। साथ ही प्रॉक्सी अथवा एवजी शिक्षकों की जानकारी मिलने पर संकुल समन्वयकों को तत्काल इसकी जानकारी बीईओ को देने कहा गया है। सभी शालाओं में कार्यरत सरकारी शिक्षकों के फोटो और उनके नाम सहित विवरण बाहरी दीवार पर प्रदर्शित करने के निर्देश दिए गए हैं। सरकारी शिक्षकों के दस्तावेजों का वेरिफिकेशन कर प्रमाणीकरण करने भी कहा गया है। शाला प्रबंधन समिति व सभी शिक्षकों का परिचय भी पालकों व विद्यार्थियों को देने कहा गया है। अधिया पर नौकरी का मामला कोई पहली बार प्रकाश में नहीं आया है। विडम्बना यह भी है कि जिसके पास पढ़ाने के लिए वक्त है, जो पढ़ाना चाहता है, पढ़ा रहा है, बच्चे पास भी हो रहे हैं, उसके पास नौकरी नहीं है। जिसके पास नौकरी है उसके पास स्कूल के लिए टाइम नहीं है। गुरुजी की फोटो लगाने का यह निर्देश भी कोई फूलप्रूफ नहीं है। जिन स्कूलों की शिकायत मिली है वो सभी दूरस्थ अंचलों की है। ऐसी जगहों पर अमूमन रंगीन फोटो इंकजेट कलर प्रिंटर से निकाले जाते हैं। खुले में लगी ऐसी तस्वीरों का रंग कुछ ही दिनों में उड़ जाना है। सिर्फ आंखों के दो बिंदु, बाल और भौंहें ही बची रहनी है। फोटो की ऐसी गत हुई तो गुरुजी का भाई तो क्या चाचा भी खड़ा होगा तो कोई नहीं पहचान पाएगा। इससे तो अच्छा होता कि गुरुजी को आईकार्ड दे देते। इसे गले में टांगना जरूरी कर दिया जाता। आईकार्ड नहीं तो अटेंडेंस नहीं। आजकल सभी बड़ी कंपनियां ऐसा करती हैं। सुविधाविहीन गांव वैसे भी किसी को आकर्षित नहीं करता। न तो डाक्टर वहां जाना चाहते हैं और न ही शिक्षक। अब जब निरीह ग्रामीण बैगा और ओझा के भरोसे जीवन यापन कर रहे हैं तो ऐवजी शिक्षकों से भी उन्हें क्या ही परहेज होगा। वैसे भी स्कूली शिक्षा पंचायत के अधीन है, फिर सबकुछ पंचायत पर ही क्यों नहीं छोड़ दिया जाता। उन्हें तो पता है कौन नियुक्त है और कौन पढ़ा रहा है।
गुस्ताखी माफ: स्कूल में लगेगी गुरुजी की तस्वीर
