बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद कर दिया है, जिसमें पत्नी के मानसिक रूप से बीमार होने के आधार पर पति को तलाक दिया गया था। कोर्ट ने तलाक की डिक्री को शून्य करने का आदेश जारी किया है। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक तिवारी की डिवीजन बेंच ने कहा कि मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति को सीधे पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। वाद मित्र के जरिए पक्षकार बनाया जा सकता है। डिवीजन बेंच ने विचारण न्यायालय के फैसले को लेकर भी तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि मानसिक रूप से विक्षिप्त बताई गई पत्नी के विरुद्ध तलाक का आदेश यदि वाद मित्र के माध्यम से प्रस्तुत नहीं किया गया तो अमान्य होगा।
कोरबा निवासी शिक्षक ने कटघोरा परिवार न्यायालय में वाद दायर कर पत्नी को मानसिक रोगी बताते हुए विवाह विच्छेद की मांग की थी। परिवार न्यायालय ने मामले की सुनवाई के बाद विवाह विच्छेद के लिए डिक्री पारित कर दी। इस फैसले को चुनौती देते हुए महिला के भाई ने वाद मित्र बनते हुए अपनी बहन की तरफ से याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता के वकील ने डिवीजन बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए कहा कि परिवार न्यायालय ने एकपक्षीय फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए शीर्ष अदालत ने प्रविधान किया है। इसके तहत ऐसे व्यक्ति को सीधे पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। इसके लिए वाद मित्र का प्रविधान लागू किया गया है। परिवार न्यायालय ने शीर्ष अदालत के प्रविधानों का उल्लंघन करते हुए एकपक्षीय फैसला सुना दिया है। सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने परिवार न्यायालय द्वारा पारित विवाह विच्छेद की डिक्री को खारिज कर दिया है।
