-दीपक रंजन दास
क्या आपने सड़कों पर पुलिस चेकिंग को कभी गौर से देखा है? पुलिस छांट-छांट कर उन्हीं लोगों को रोकती है जिनके पास या तो ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होती, या गाड़ी के कागजात पूरे नहीं होते। चलती गाड़ी के सवार का चेहरा और हाव-भाव देखकर ही पुलिस वह ताड़ लेती है जो किसी और को नजर नहीं आता। इसी को बाज की नजर कहते हैं। यह पुलिस की ट्रेनिंग का हिस्सा है। पुलिस चाहे तो वह अच्छी खासी संख्या में अपराधों को होने से पहले ही रोक सकती है। पुलिस ने इसका भी सबूत दिया। दो महिलाओं को लिए दो पुरुष ट्रेन से सफर कर रहे थे। बिलासपुर स्टेशन पर पुलिस की स्पेशल टीम की उनपर नजर पड़ी तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा। टीम की महिला सदस्यों ने गुपचुप उन महिलाओं की पास से निगरानी की। उनसे बातें करने की कोशिश भी की। संदेह गहराने पर पुलिस टीम ने चारों को अपने घेरे में ले लिया और अनूपपुर स्टेशन पर उतार लिया। सघन पूछताछ की तो शक सही निकला। दोनों पुरुष मानव तस्कर ही थे और युवतियां उनकी शिकार। वे इन युवतियों को राजस्थान के जयपुर लेकर जा रहे थे। युवतियों को सही सलामत ग्राहक तक पहुंचाने के ऐवज में उन्हें प्रति युवती 20 हजार रुपए मिलने थे। युवतियों ने बताया कि वे घर जाना चाहती हैं। उनके घर वालों को इस सौदे की भनक तक नहीं है। मामला अब आला अधिकारियों के संज्ञान में है। दोनों राज्यों की पुलिस मिलकर इस रैकेट के खुलासे पर काम कर रही है। दरअसल, छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों से लगातार हो रही मानव तस्करी की खबरों के बाद पुलिस ने इसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया है। ये टीमें बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन और सस्ते लॉज तथा धर्मशालाओं पर कड़ी नजर रख रहे हैं। पर यह तो सिक्के का सिर्फ एक पहलू है। सिक्के का दूसरा पहलू इतना उजला नहीं है। कई बार पुलिस को अपने सामने तश्तरी में सजाया हुआ सबूत भी नहीं दिखाई देता। आप लाख कोशिश कर लो, हाय तौबा मचा लो, भीड़ इक_ी कर लो पर पुलिस अगर नहीं चाहेगी तो उसे दिखाई नहीं देगा। उसे यह वरदान मिला हुआ है। वह जब चाहे कृष्ण और जब चाहे धृतराष्ट्र बन सकती है। कुछ समय पहले तक भिलाई में एक तस्वीर और एक सीसीटीवी फुटेज वायरल हो रहा था। पुलिस ने आंखें बंद रखीं क्योंकि उसे पता था कि सबकुछ सेटल हो जाएगा। हुआ भी यही, सबकुछ सेटल हो गया। सबके सब खुश हो गए। अधर में लटका रह गया तो बस एक सवाल कि क्या बिल्डरों को लोगों की जान-माल से खेलने की खुली छूट दे देनी चाहिए?
गुस्ताखी माफ: चाहे तो उड़ती चिडिय़ा के पर गिन सकती है पुलिस




