-दीपक रंजन दास
दुनिया में सबसे गंदी बीमारी अगर कोई है, तो वह है शक करने की। विदेश का तो पता नहीं पर देश में पूरी व्यवस्था शक के आधार पर टिकी हुई है। और इसी शक को दूर करते-करते अकसर जिन्दगी गुजर जाती है। सरकार को हर साल अनाथ बच्चे मिलते हैं। कोई स्टेशन पर पड़ा मिलता है तो किसी को कोई बस स्टैण्ड पर छोड़ गया होता है। कुछ बच्चे आवारागर्दी करते हुए भी मिल जाते हैं जिन्हें आश्रयस्थलों में रखा जाता है। आज कल अस्पतालों में भी बच्चों का पालना लगा होता है। इसके सामने दीवार पर लिखा होता है कि आप यहां अपना अवांछित बच्चा छोड़ सकते हैं। आपसे कोई जवाब तलब नहीं किया जाएगा। बच्चे को कूड़ेदान में फेंका तो आपकी खैर नहीं, सूंघती हुई पुलिस घर पहुंच जाएगा। कानूनी झमेले के अलावा सामाजिक छीछालेदर भी होगी। छत्तीसगढ़ की 14 संस्थाओं और आश्रमों में फिलहाल 2200 बच्चे हैं। बच्चा गोद लेने के लिए 723 आवेदन लगे हुए हैं जिनमें से 97 को शार्टलिस्ट किया गया है। बच्चा गोद लेने के लिए दंपति को पैन कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, आयकर रिटर्न, विवाह या डिवोर्स प्रमाण पत्र, पति या पत्नी की मृत्यु हो चुकी होतो उसका डेथ सर्टिफिकेट, जन्म प्रमाण पत्र, डाक्टरी प्रमाण पत्र आदि देना होता है। यह साबित करना होता है कि गोद लेने वाले के पास इतनी संपत्ति है कि अगर उसे कुछ हो गया तो भी बच्चे की परवरिश पर आंच नहीं आएगी। काश! ऐसी कोई शर्त शादी-ब्याह के लिए भी रख दी जाती। 80 फीसदी लोग न शादी कर पाते और न बच्चे पैदा कर पाते। देश की आबादी की समस्या अपने आप हल हो जाती। दूसरी समस्या शक की है। शक की कोई दवा नहीं होती। जिम्मेदारों को लगता है कि लोग बच्चों को ले जाकर बेच देंगे, उनसे शादी कर लेंगे, उनसे धंधा करवाएंगे। इसकी रोकथाम के लिए भी कठोर नियम बनाए गए हैं। 4 साल का बच्चा गोद लेने के लिए प्रार्थी की उम्र 45 साल, 8 साल के लिए 50 साल तथा 18 साल के बच्चे के लिए 55 साल से अधिक होनी चाहिए। यानी बच्चे और उसके दत्तक माता पिता के बीच उम्र का कम से कम 25 साल का फासला होना चाहिए। सरकार को शक है कि इतना फर्क नहीं रखा तो लोग बेटी बना कर ले जाएंगे और बीवी बना लेंगे। एक दंपति को पिछले पांच साल से केवल इसलिए बच्चा नहीं दिया जा रहा है कि जिम्मेदार उसपर भरोसा नहीं कर पा रहे। लिहाजा “कारा” में आवेदन लगाए बैठे लोग चार-चार पांच-पांच साल से इंतजार कर रहे हैं और अनाथ बच्चे आश्रम में ही बड़े हो रहे हैं।
गुस्ताखी माफ: काश ऐसी शर्त शादी के लिए भी होती
