-दीपक रंजन दास
भिलाई को कुछ लोग रिटायर्ड लोगों की बस्ती मानते हैं। भिलाई इस्पात संयंत्र में कभी 65 हजार कर्मचारी थे। 65 हजार परिवारों में आने वाला यह पैसा बाजार की रौनक बढ़ाता था। कर्मचारियों की संख्या कम होती चली गई, मकान रिटायर्ड लोगों को लीज पर चढऩे लगे। कई आवासीय इमारतें जर्जर हो गईं तो कुछ को ढहा दिया गया। बाजारों में एक अजीब सा खालीपन महसूस किया जाने लगा। यहां तक कि यहां के नेता भी कहने लगे कि यह रिटायर्ड लोगों की बस्ती है जहां नौजवानों के लिए कोई आकर्षण नहीं बचा है। निजी उद्यम से यहां थोड़ी बहुत रौनक चौपाटी में होती थी, वह भी समय के साथ सिमट गया। चकरी रेस्तरां भी भसक गया। ट्रैफिक पार्क तमाम साजो सामान के साथ बरसाती मेंढक बना रहा। अब थोड़ी बहुत साख बची है तो एक मिठाई दुकान, एक वेज रेस्तरां और एक मशहूर चायवाले के कारण। पर कहते हैं कि सोच बदलने से दुनिया बदलती है। इस्पात नगरी ने कुछ साल पहले अंगड़ाई ली। सेक्टर-5 में एक शानदार पार्क विकसित हुआ। अब सिविक सेन्टर के लिये योजना बन रही है। मान्यूमेंट और कला मंदिर को शामिल करते हुए सिविक सेन्टर के पूरे मैदान को विकसित किया जा रहा है। विशाल पार्किंग स्पेस की तैयारी शुरू हो चुकी है। यहां फूड जोन, हवाई झूला, बंजी जम्पिंग, ट्रैंपोलिन, टॉय ट्रेन जैसी सुविधाएं विकसित होंगी। प्रदर्शनी स्थल, इंडोर ऑडिटोरियम, ओपन एयर थिएटर जैसी सुविधाएं यहां पहले से हैं। कई बड़े ब्रैंड्स के शोरूम भी यहां पहले से हैं। कुल मिलाकर यह एक ओपन एयर मॉल होगा। जब इतना काम नगर निगम करेगा तो भिलाई इस्पात संयंत्र को भी प्रेरणा मिलनी ही थी। संयंत्र ने भी अब जयंती स्टेडियम की सुध लेने का फैसला किया है। यहां प्रदेश का पांचवा एस्ट्रोटर्फ बनेगा। एथलेटिक्स ट्रैक भी विकसित किया जाएगा। बालिकाओं के लिए स्पोट्र्स हॉस्टल भी बनेगा। शहर को सिर्फ एक नई पहचान ही नहीं नई ऊर्जा भी मिलेगी। बंद कमरों में बैठकर हुक्का गुडग़ुड़ाने वालों की संख्या पर लगाम लगेगी। पर इन बड़ी-बड़ी योजनाओं के बीच कुछ छोटी-छोटी जरूरतें भी हैं जिनका ख्याल रखा जाए तो अच्छा रहेगा। पंत स्टेडियम का फुटबाल ग्राउंड लंबे अर्से से विकास की बाट जो रहा है। क्रिकेट ग्राउंड को तो यंगिस्तान के चलते थोड़ा फेसलिफ्ट मेला था पर जिस बाल्केटबॉल ग्राउंड ने प्रदेश को बार-बार कई बार नेशनल चैम्पियन बनाया, उसके सीमेंट कोर्ट टूटे पड़े हैं। इनका भी संधारण हो जाता तो सोने पर सुहागा हो जाता। साथ ही बीएसपी अपने खाली पड़े भवनों का यो स्वयं कुछ करे या फिर निगम को हस्तांतरित कर दे ताकि वहां भी कुछ नया प्लान किया जा सके। अन्यथा ये सिविक सेन्टर के आसपास विचरने वाले नशेडिय़ों का नया ठिकाना बन जाएंगे।