-दीपक रंजन दास
एक खबर आई है कि हेमचंद यादव विश्वविद्यालय में यूजी कोर्स के प्रथम वर्ष के लिए आनलाइन पंजीयन प्रारंभ होते ही 24 हजार से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। सर्वाधिक 9551 आवेदन गणित एवं विज्ञान संकाय में प्रवेश के लिए हैं जबकि दूसरे नंबर पर कला संकाय है जिसमें प्रवेश के लिए 9235 आवेदन आए हैं। तीसरे पायदान पर रहने वाला वाणिज्य संकाय पीछे खिसक गया है। इसके लिए अब तक केवल 5330 आवेदन आए हैं। तो क्या वाणिज्य का बुलबुला फट गया है? अब तक के आंकड़े तो यही कहते हैं पर तस्वीर अभी पूरी नहीं हुई है। सीबीएसई इंग्लिश मीडियम के विद्यार्थियों का रिजल्ट अभी आया नहीं है। दरअसल इस्पात नगरी में कॉमर्स उन लोगों के का विकल्प रहा है जो चाहते तो डाक्टर या इंजीनियर बनना थे, पर दसवीं में अंक कम हो गया। कुछ लोगों ने स्कूल बदल कर साइंस-मैथ्स में एडमिशन लिया पर ज्यादा कुछ हो न सका। पढ़ाई साल दर साल कठिन होती चली गई तो भाग कर कॉमर्स का दामन थाम लिया। इनमें बहुत कम संख्या में ऐसे विद्यार्थी भी थे जो केवल कलर ब्लाइंडनेस की वजह से साइंस छोडऩे को बाध्य हुए थे। इन बच्चों की हसरतों को पूरा करने के लिए एक पूरा मायाजाल बिछाया गया। इन्हें यकीन दिलाया गया कि ढंग से मेहनत करोगे तो सीए/सीएमए/सीएस बनकर नाम और पैसा दोनों कमा सकते हो। आज अधिकांश कॉलेजों में कॉमर्स की कक्षाएं खाली पड़ी रहती हैं। बच्चे एडमिशन तो लेते हैं पर अटेंडेंट की सेटिंग करने के बाद सीधे कोचिंग सेन्टर पहुंच जाते हैं, सीए/सीएम करने। इन बेचारों को पता ही नहीं है कि इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की पॉलिसी क्या है। इंस्टीट्यूट मेरिट के आधार पर उतने ही बच्चों को पास करती है जिससे बाजार में सीए की मांग और आपूर्ति पर विपरीत प्रभाव न पड़े। इसलिए सफल बच्चों का प्रतिशत 4-5 फीसद रहता है। इसका कारण भी साफ है। यदि सीए भी चना-मुर्रा की तरह उपलब्ध होने लगे तो लोग इन्हें दस हजार रुपए में अकाउंट्स क्लर्क का जॉब ऑफर करने लगेंगे। आरंभिक कुछ वर्षों में बच्चों ने वह सुन भी लिया और मान भी लिया जो कोचिंग वाले कहते थे, पर अब वे हकीकत से वाकिफ हैं। उन्हें पता है कि सबसे ज्यादा नौकरियां और वेतन आज मार्केटिंग और सेल्स में है। बीबीए एक अच्छा विकल्प है जिसके साथ मार्केटिंग में एमबीए किया जा सकता है। किसी कोचिंग की जरूरत नहीं। आट्र्स विषय में थोड़ी सी मेहनत कर ली तो पीएससी और यूपीएससी की तैयारी को भी समय दे पाएंगे। सरकारी स्कूलों में नौकरी का रास्ता तो खुला ही रहेगा। हरड़ लगेगी न फिटकरी और रंग चोखा आएगा।
गुस्ताखी माफ: कला संकाय के प्रति बढ़ता रूझान
